Pyasi dharti pyase log in Hindi Magazine by S Sinha books and stories PDF | प्यासी धरती प्यासे लोग

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प्यासी धरती प्यासे लोग

प्यासी धरती प्यासे लोग

आज से लगभग 40 साल पहले विश्व की आबादी आज की तुलना में आधी थी.आबादी बढ़ने के अलावा औद्योगीकरण के काफी बढ़ जाने और.जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव के चलते हमें उतना जल उपलब्ध नहीं है जितने की जरूरत है. साथ में हमारे घरेलु उपयोग में भी पानी की खपत बढ़ गयी है. जल एक वैश्विक संकट बन कर उभर गया है.

यद्यपि पृथ्वी का 70 % जल है.पर सच यह है कि जितना जल उपलब्ध है उसका करीब 97 % खारा है.शेष 3 % में भी 0.014 % फ्रेश वाटर तक ही हम आसानी से पहुँच सकते हैं. सागर के खारे पानी को पेय बनाया जा सकता है, पर इसमें बहुत ज्यादा खर्च है. सूर्य ऊर्जा या अन्य वैकल्पिक ऊर्जा के उपयोग से खर्च कुछ कम किया जा सकता है.

दुनिया के लगभग हर कोने में विशेष कर बड़े शहरों में पानी की किल्लत है. दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन का उदाहरण सर्वविदित है. यह कोई एकमात्र उदाहरण नहीं है. अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के देश जल संकट से बुरी तरह से त्रस्त हैं.माना जाता है कि उत्तरी गोलार्द्ध में और यूरोप के स्कैंडेवियन क्षेत्र में जल संकट का प्रभाव कम है.पर अमेरिका जैसे समृद्ध और उन्नत देश के कैलिफ़ोर्निया, नेवादा आदि प्रांतों में जल की कमी है. भौगोलिक स्थिति, जलवायु, जलवायु परिवर्तन, औद्योगीकरण आदि कारणों से पृथ्वी पर जल सभी जगह समान मात्रा में उपलब्ध नहीं है. कुछ क्षेत्र अतिवृष्टि तो कुछ अल्पवृष्टि या अनावृष्टि से प्रभावित हैं.

भारत और चीन जैसे विशाल जनसंख्या वाले देशों के अनेकों क्षेत्रों में जल की समस्या है.फ्रेश और स्वच्छ जल मिलना कठिन हो रहा है. चीन में विश्व की आबादी के 20 % लोग हैं जबकि सिर्फ 7 % फ्रेश वाटर ही उपलब्ध है . एक सर्वे में देखा गया है कि चीन में करीब 400 शहर जल संकट झेल रहे हैं. भारत की स्थिति बेहतर नहीं है. देश की एक चैथाई जनसंख्या गंगा नदी के जल पर निर्भर है जिसका स्तर गिरता जा रहा है और वह दूषित होती जा रही है. कभी जलाभाव में ताप बिजली घर या अन्य कारखाने भी बंद करने पड़ते हैं. पानी के बंटवारे को लेकर राज्य या राज्य के अंदर के क्षेत्र आपस में लड़ते देखे गए हैं

फ्रेश वाटर का 85 % भाग हम एक्विफायर ( aquifiers - जलीय चट्टानों ) से प्राप्त करते हैं. ज़मीन के नीचे डीप बोरिंग कर हम किसी तरह अपना काम तो चला रहे हैं, पर ग्राउंड वाटर का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. अनुमान किया गया है कि हिमालय का 20 % बर्फ 2035 तक पिघल जायेगा और 2030 तक आवश्यकता की तुलना में विश्व में 40 % कम पानी उपलब्ध होगा. नासा की रिपोर्ट के अनुसार ग्राउंड वाटर स्तर इतनी बुरी तरह गिरता जा रहा है कि 2030 -35 तक 60 % एक्विफायर जल की कमी हो सकती है और कृषि उत्पाद में 25 % कमी आ सकती है. जून 2017 के बिजनेस वर्ल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, नागपुर, शोलापुर, कोच्ची, सागर, औरंगाबाद, इंदौर, भोपाल, उज्जैन सहित देश के 21 शहरों में भीषण जल संकट की संभावना है.

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95 % से ज्यादा उपलब्ध जल खेती, कल कारखानों और खदानों में उपयोग में आता है, शेष 5 % से भी कम जल घर में उपयोग होता है. इसके अतिरिक्त कुछ जल हम जानबूझ कर या अनजाने में बर्बाद कर देते हैं. वैश्विक स्तर पर अनुमान किया गया है कि औसतन लगभग 3, 70, 000 गैलन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष पानी की खपत है जबकि हम लगभग 8 ग्लास पानी ही रोजाना पीते हैं और यह मात्र 180 गैलन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष होता है. भारत में यह खपत औसत से कुछ कम 2,90,000 गैलन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है.

देखा गया है कि अन्य देशों की अपेक्षा कपास की खेती में भारत में दुगने जल का प्रयोग होता है. इसके अलावा हम पानी के दुरूपयोग और बर्बादी के मामले में उतना सचेत या संवेदनशील नहीं हैं.

जल संकट से निपटना उतना आसान नहीं है, पर असंभव भी नहीं है अगर हर कोई इस दिशा में चिंतन कर एक कदम आगे बढाए. बूँद बूँद से ही तालाब भरता है. अपने घरों में पानी के दुरूपयोग पर लगाम लगाएं - ब्रश करते या शेव करते समय नल को बंद रखें, नहाने या कपड़े धोने में उचित मात्रा में ही खर्च करें. अपने घर या बाहर भी पानी का रिसाव जहाँ कहीं देखें उसे बंद करने की दिशा में कदम उठायें. हमारे घर के लॉन या कार की धुलाई आदि में कम से कम पानी का व्यवहार हो. बाथरूम के पानी को रिसायकिल कर दूसरे कामों में लाया जा सकता है. बरसात के जल को संचित कर रखने के लिए रेन हारवेस्टिंग करें.

हमारे उद्योगों में भी पानी उचित मात्रा में ही उपयोग हो. ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दें जो पुराने कपड़ों को रिसायकिल कर नया बनाते हों ताकि कपास की खेती में कुछ कमी आ सके, कपास की खेती और फिर इन्हें रंगने में काफी पानी की जरूरत होती है.

जल संकट की समस्या का समाधान ढूंढने के प्रयास में वैज्ञानिक तरीकों के अतिरिक्त हमें युवाओं को प्रेरित करना होगा और बच्चों को प्राथमिक स्तर से ही इसके बारे में शिक्षित करना होगा.

- शकुंतला सिन्हा -

( बोकारो, झारखण्ड )