MOOK PREM in Hindi Letter by Amita Joshi books and stories PDF | मूक प्रेम - Letter to your valentine

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मूक प्रेम - Letter to your valentine

मूक प्रेम

अमिता जोशी

12.02.18

आदरणीय एवं प्रिय रामजी

सादर सप्रेम अभिवादन । आशा है आपको मेरा यह प्रेमपत्र १४ फरवरी से पहले मिल जाएगा । आशा है आप इसे पढ़ लेंगे और हर वर्ष की भांति इसका उत्तर बेशक न दें पर अपना स्नेह और प्रेम भरा एक सन्देश "खुश रहो सुखी रहो" अवश्य भेजेंगे । आशा है आपको मेरा भेजा स्वेटर जो हर वर्ष की भांति मैंने खुद बनाया है,पसंद आएगा और आपको सच्चे प्रेम और शुभकामनाओं की गर्माहट से भर देगा|

प्रिय, मुझे आज भी वह दिन याद है जब आपको महाविद्यालय के प्रांगण में मैंने पहली बार देखा था । बीस साल पहले, जब मुझे बीसवां वर्ष पूरा होने में केवल एक हफ्ता ही बचा था और वसंत ऋतु ने दस्तक दी ही थी,आप की वो मनमोहिनी छवि मेरे मन और मस्तिष्क को प्रभावित करने के लिए अद्भुत थी । उस दिन मैं अपनी बहिन के साथ महाविद्यालय में किसी कार्यवश कुछ समय के लिए आयी थी । आपसे मेरी कोई औपचारिक मुलाक़ात तो नहीं हुई परन्तु आने वाले पंद्रह दिनों में आपकी सरलता, सहजता और तेजस्वी सुदर्शन व्यक्तित्व से मैं इतनी अधिक प्रभावित होगयी की मैंने उस महाविद्यालय परिवार का एक अटूट हिस्सा बनने का, दीदी की तरह आपका सहकर्मी बनने का शुभसंकल्प ले लिया । इस एक माध्यम से मैं आपसे जुड़ जाना चाहती थी ।

आप के गुणों के प्रति श्रद्धा से शुरू हुआ मेरा प्रेम धीरे धीरे आपके रूप के प्रति मोह में भी बंधने लगा । मैं यदि आपको एक दिन भी महाविद्यालय में ना देखती तो मुझे घबराहट होने लगती । आप छुट्टी लेकर घर जाते तो मैं आपके घर फ़ोन करने में देर ना करती और इसी फ़ोन के क्रम में मैंने कुछ ही वर्षों में माताजी, पिताजी, भाभी, और आपके प्रिय भतीजे से बहुत कुछ आपके विषय में जाना । आपकी मातृ पितृ भक्ति से मेरा प्रेम आपकेलिए और अधिक गहरा होगया । मैंने सारे प्रयास खुद को आप के अनुकूल बनाने के शुरू करदिये । आप तो पहले दिन से ही मेरे वैलेंटाइन बन गए थे पर आप की वैलेंटाइन बनना मेरा एक मधुर सपना हमेशा रहा और उस एक सपने को साकार करने के लिए मैंने सालों प्रयास किया । उनदिनों आपने मुझसे कहा था "मेरी जैसी नही, गांधीजी जैसी बनो" । पर मेरा प्रेम आपके लिए आपसा ही बनजाना चाहता था । सच कहूँ तो आपसा बनने के प्रयास में मैंने खुद को भी जाना ।

"जब से तेरी रूह की ज़ुस्तज़ू की है",अमि ने अपनी रूह से भी गुफ्तगू की है"|

आप जिस राह से पैदल महाविद्यालय जाते, मैं नित उसी राह से गुज़रकर जाती, आपके पदचिन्ह मेरे लिए प्रेरणा का अभूतपूर्व स्त्रोत बनगए । आज सालों पुरानी वह बातें इसलिए लिख रही हूँ क्यूंकि वैलेंटाइन के रूप में पहले दिन आपको मैंने देखा था वही रूप मुझे पिछले बीस वर्षों से प्रेरित कर रहा है । मेरे जीवन में जहाँ भी आज प्रेम का आदान प्रदान है वह आपका ही दिया हुआ है । मैं आपको अपने शहर से दूर जाते नही देख सकती थी क्यूँकि उस समय मोबाइल फ़ोन भी नहीं थे । तब आपके ट्रांसफर के बारे में सुनकर और आपको परेशान देखकर मैंने लिखा था

"जो मैं होती इ. एम. आशा,

नही होती तुमको निराशा,

ट्रांसफर केस तुम्हारा सुलझाती,

नही ईमानदार को कभी उलझाती ।

मुझे याद है आपकी वह नीले रंग की महंगी कमीज,हाथ से बना वह लाल स्वेटर, वह नीली सफ़ेद जैकेट, आपको दूर से पहचान लेने में सहायक होती थी । यह बात मैंने आपको कभी नही बतायी कि जिस घर में आप किराए पर रहते थे, मुझे उस घर के मकान मालिक से ईर्ष्या होने लगी थी क्यूंकि उनके साथ आपकी गहरी दोस्ती हो गयी थी । मैं उनका स्थान लेना चाहती थी । तब मैं बीस वर्ष की युवती थी और आप आयु और बुद्धि दोनों में ही मुझसे श्रेष्ठ थे । मेरे जीवन में वसंत ऋतु का आगमन आपके आने से ही हुआ और जैसे जैसे मैं आपके गुणों से परिचित होती गयी, आपको अपने प्रेम और आपके प्रति अपनी भावनाओं को बताना मेरे लिए मुश्किल होता गया । उन दिनों मैं अक्सर महाविद्यालय आकर आपको दूर से देखा करती थी और आपका वह आत्मिक बल ही था जो आपके चेहरे पर राम सी दिव्यता लाता था और मुझे आपकी तरफ आकर्षित करता था । शायद आप यह नही जानते की मुझे पूरा एक वर्ष लगा था आपको पहला प्रेमपत्र लिखने में,जिसके साथ एक फूल भी भेजा था,पर स्पष्ट रूप से उसमे प्रेम को व्यक्त नहीं कर पायी थी । एक वर्ष लगा था मुझे आपके स्थायी घर का पता ढूंढने में और आपके घर का लैंडलाइन नंबर पता करने में । मुझे याद है वो पहला फ़ोन जो

मैंने आपके घर पर किया था और पूछा था,"चिट्ठी मिली? वैलेंटाइन कार्ड पढ़ा?"आपने केवल इतना ही उत्तर दिया था"मिल गया है,बाद में पढूंगा" । मेरे लिए इतना ही काफी था और फिर उस दिन के बाद जो प्रेमपत्र का सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक जारी है । प्रिय तब मैंने आपको जो आपके गुणों के अनुरूप सम्बोधन दिया था, आज भी वही है । अंतर केवल इतना ही आया है, तब मैं आपके लिए एक अनजान लड़की थी जिसको जानकर और परख कर ही आप मित्रता का हाथ आगे बढ़ाना चाहते थे|वैलेंटाइन के बारे में शायद आप तब सोच नहीं सकते थे । उस घटना को याद करके मैं आज भी रोमांचित हो जाती हूँ जब आपको मेरे विषय में पता चला था और उन्ही दिनों मैंने महाविद्यालय में अस्थायी रूप से कार्य करना आरम्भ किया था । उस दिन से लेकर आज तक मैंने आपको अनगिन प्रेमपत्र लिखे ...कविताओं, कहानियों, सुख दुखके एहसासों से भरे पत्र जिनमे प्रेम स्पष्ट रूप से कभी भी प्रदर्शित नहीं हुआ । मुझे आज भी याद है जब कुछ साल पेहले आपने कार खरीदी थी और मैने उसको देखकर उसका नाम ग्रेसी रख दिया था । आप ने भी कोई आपत्ति नही की थी । उस दिन के बाद से मेरे पत्रों में ग्रेसी के लिये प्यार अवश्य जाने लगा था । ९ अप्रेल को उस के जन्मदिन पर लिखी कविता मुझे आज भी याद है ।

बीच राह मे रुक मत जाना,

मालिक को मन्ज़िल तक पहुचाना,

ईधन ज्यादा तुम मत खाना,

होर्न मोड़ पर जरूर बजाना,

मालिक से रहे घनी प्रीत,

लक्श्य तुम्हारा हो उन की जीत​,

सफ़र मे बनी रेहना मीत​,

सुनाना सदा मधुर संगीत ।

मुझे सदा अपने प्रेम के आपतक पहुँचने से पहले आपके सम्मान का ख्याल आजाता । मैं चाहती थी मेरी सद्भावना,मेरा प्रेम कभी भी किसी भी रूप में मेरे वैलेंटाइन को, संत वैलेंटाइन को आहत न करे । आपने इतने वर्षों में कभी मेरे किसी पत्र का जवाब तो नहीं दिया पर समय के साथ मुझे,मेरे परिवार को जानने के बाद आप वैलेंटाइन डे को छोड़ कर अन्य सभी अवसरों पर मेरे लिए उपहार अवश्य भेजते थे । मेरे लिए अपने वैलेंटाइन की तरफ से मिले वो उपहार ही बहुत थे । आपकी भेजी वो घडी आज भी मेरी कलाई पर सजकर मुझे समय का पाबन्द बनाती है,नीली जैकेट निस्वार्थ प्रेम की गर्माहट देती है और आपकी प्रेरणा से मिला सर्वश्रेष्ठ उपहार "महाविद्यालय में स्थायी नौकरी" मेरे जीवन का अनमोल रत्न है । आपने मेरे जन्म दिन पर एक बार जो गुलाबी रंग की छोटी और सावली सी लम्बी गुडि़या भेजी थी, आज प्रौढावस्था मे भी मेरी सबसे प्रिय सखी वो ही है । वो मुझतक आपका प्रेम अपनी भाषा मे पहुन्चाती रहती है और मुझे मूक प्रेम का महत्त्व भी बताती है । मौन रहकर खुश और सुखी रहना उनसे आज भी सीख रही हू । आपका वो सन्देश “खुश रहो सुखी रहो “चरितार्थ हो रहा है ।

लैंडलाइन नंबर से शुरू हुआ वो बातचीत का सिलसिला कब मोबाइल फ़ोन की रोजमर्रा की आदत बनगया, मुझे पता ही नही चला । रोज एक फ़ोन सुबह और एक शाम मेरी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनगया । मुझे तब भी और आज भी आपके उस एक छोटे से सन्देश"खुश रहो,सुखी रहो" का रोज इन्तजार रहता है ।

आपके मूक प्रेम को मैं उस एक सन्देश में पढ़ सुन और समझ सकती हूँ । आज बीस वर्ष का अंतराल आने पर भी, हम दोनों का जीवन की अलग अलग दिशाओं में अपने अपने निजी, सामाजिक, पारिवारिक दायित्वों का वहन करने पर भी, संवाद कम होने पर भी,मुझे हमेशा आपका बहुत ख़याल आता है । आज भी, प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करने के बाद भी,फरवरी में १४ तारीख से पहले अनायास मेरे हाथ प्रेमपत्र लिखने के लिए आतुर हो उठते हैं । अपना सच्चा प्रेम और आपका वो मूक प्रेम मेरे जीवन को आधार देता है और आज भी अप्रैल महीने में मैं गुलाब के वो जंगली फूल इकट्ठे कर के सुखाती हूँ ताकि उनसे वो कार्ड बना सकूँ जिसको मई के महीने में अपने निस्वार्थ, विशुद्ध प्रेम के साथ आपको जन्मदिन पर भेज सकूं ।

युवा अवस्था में लिखे गए उन फुर्सत के पलों में वो छोटे छोटे से पद, कवितायें, आज भी मेरे खाली समय को भर जाती हैं,, स्नेह से, और उस अभूतपूर्व एहसास से जिसे लोग प्रेम कहते हैं. ।

उनदिनों लिखी कुछ पंक्तियाँ आपकेलिए वैलेंटाइन डे पर

आपके पास सालों साल रहे आती,

मेरी यह प्रेम भारी पाती,

तितली के पंखों से सजकर,

फूलों के रंगों में रंगकर,

मन को जो पल में छू जाती,

ऎसी मेरी प्रेम भारी पाती ।

प्रेम के सम्बन्ध में आपने मुझसे एक ही बात कही थी "ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होये" । अब जब मैं आपके मूक प्रेम को समझ गयी हूँ तो मुझे आपके पत्र और कार्ड का इंतज़ार और भी ज्यादा रहता है,और मैं उम्मीद करती हूँ कि आप मेरे जन्मदिन से थोड़ा पहले पत्र एवं कार्ड अवश्य भेज देंगे । बीते वर्षों में मैंने कुछ चीज़ें आपसे ज़िद करके भी मांगी हैं और आपने सहर्ष दी भी हैं जैसे एक किताब,एक गुड़िया, एक जैकेट, इस वर्ष मैं आपसे इतना ही मांगती हूँ कि आप मुझसे अपने सब सुख दुःख बाँट लें, संत वैलेंटाइन की तरह सब दुःख अकेले ना झेलें,और "चित्रकूट "घर बनाने के लिए ज्यादा चिंता न करें । अपनी सेहत का ध्यान रखें ।

सादर सप्रेम

अमिता