Kahi Khushi, Kahi Gum in Hindi Comedy stories by Arvind Kumar books and stories PDF | कही ख़ुशी, कही गम

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कही ख़ुशी, कही गम

कहीं खुशी, कहीं ग़म

पता नहीं, यह सिर्फ मुझे ही लगा या फिर आप लोगों को भी। इस बार लोगों के अन्दर आजादी के जश्न को लेकर कुछ ज्यादा ही जोश था। उनका ज़ज्बा इस बार हर बार से कुछ ज्यादा ही हिलोरें मार रहा था। वैसे तो, सरकारी दफ्तरों में यह ज़ज्बा-ए-आजादी अन्य सालों की तरह इस बार भी महज़ रस्म अदायगी वाला था। वही ढाक के तीन पात। टोटल रूटीनी एक्शन रीप्ले। हर बार की तरह। हर दफ्तर के हर बड़े साहब ने अपने लुटे-पिटे और चुसे हुए चेहरे के साथ झंडा फहराया। और यह साबित करने की पुरजोर कोशिश की एक वे ही हैं, जो एकमात्र देशभक्त और ईमानदार हैं। हर छोटे साहब ने बड़े साहब को खुश कर के उनकी बगलगिरी पाने के लिए अपनी पत्नी या बेटी द्वारा लिखा हुआ पर उपदेश कुशल बहुतेरे टाईप का देशभक्ति वाला भाषण पढ़ा। दरबारी गवैयों ने हर बार की तरह इस बार भी ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ और ‘मेरे देश की धरती सोना’ वाले गानों को अपने फटे हुये बांस जैसे गले को फाड़-फाड़ कर गाया। और अंत में सबसे छोटे पिद्दी, उदीयमान और खास वाले चम्मच साहब ने सबको थैंक्यू थैंक्यू बोल कर भैया जी स्माईल मार्का फोटू खिंचवाई। हर बार की तरह पसेरी के हिसाब से खरीदे हुए लड्डू बंटे। और इति श्री रेवाखंडे की तरह इस बार भी एक दफ्तरी और रस्मी जश्न मना कर आज़ादी को अमर कर दिया गया।

पर गैर सरकारी स्कूलों, दफ्तरों, प्रतिष्ठानों, पार्टी दफ्तरों, बैंकों और इंश्योरेंस कंपनियों में यह ज़ज्बा वाकई इतना जोशीला और घनीभूत था कि उसका उछल-उछल कर छलकना देखते ही बनता था। शायद यह सब मुक्त-बाजार, पीपीपी और एफडीआई की आमद का असर था। ऐसा लग रहा था कि यह देश इस बार आज़ादी का पहला स्वतन्त्रता दिवस मना रहा है। और शायद इस बार लाल किले की प्राचीर से कुछ ऐसी अभूतपूर्व घोषणायें की जायेंगी कि यह देश रातों-रात ब्रिटेन, ज़र्मनी, चीन, जापान और अमेरिका से मीलों आगे निकल जायेगा। इसीलिये इस बार देश भक्ति के गाने खूब से भी कहीं ज्यादा और हर जगह बड़े भक्ति भाव से बजाये गये। और वे भी सिर्फ पंद्रह अगस्त के दिन ही नहीं, बारह या तेरह अगस्त से ही बार-बार और लगातार।

इसलिए इस बार म्यूजिक स्टोर वालों की खूब अच्छी वाली चांदी हुयी। और सिर्फ उन्हीं की नहीं, फूल और माला बेचनों वालों की बगिया में भी अचानक से बसंत बहार आ गयी। गरीब और भूखे बच्चों को भी इस बार सड़कों, जाम और चौराहों की लाल बत्ती पर छोटे-छोटे झंडों को बेचने का भरपूर मौका मिला। देश प्रेम में डूबे लोगों ने अपनी गाड़ियाँ रोक-रोक कर खूब झंडे खरीदे। और ढेर सारे झंडे बेच कर उन नौनिहालों का पेट भी ठीक-ठाक से भर गया। वाकई उनके लिए इस बार आजादी का जश्न एक सुखद और स्वप्निल जश्न साबित हुआ। यह और बात है कि देश के कई हिस्सों में मिलावटी लड्डू, मिठाई और मिड डे मील खाने से कई बच्चे बुरी तरह से बीमार भी पड़ गये। लेकिन मिलावाट खोरों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। और इस बार उनकी कमाई भी बिना रोक-टोक के खूब फली-फूली और आबाद हुई। और जिस तरह से उनकी इच्छा पूरी हुयी, भगवान ने और बहुतों की बहुत सारी इच्छाओं को भी पूरा करने की भरपूर कोशिश की।

पर उन तमाम लोगों की इच्छा इस बार भी पूरी नहीं हुई, जिनको इन दिनों यह शिकायत होने लगी थी कि पता नहीं पीएम हाउस की कुर्सी को क्या हो गया है कि जो भी उस पर बैठता है, अचानक से ही मौन धारण कर लेता है। पहले वाले तो वैसे भी बहुत ही कम बोलने वाले एक एक्सीडेंटल पीएम थे। और एक ख़ास परिवार की खासमखास मुखिया का आदेश और निर्देशानुसार ही कभी कभार बोला करते थे। पर अब ये नये वाले भी लगभग मौनी बाबा बन कर चुप लगा गये हैं। चुनावों से पहले और चुनावों के दौरान तो वे अच्छा खासा बोलते थे। पर अब न तो कुछ बोलते हैं और न ही अपना नियमित वाला ट्वीट करते हैं। तो क्या उनके ऊपर भी किसी परिवार या किसी मुखिया का कोई दबाव है?

लेकिन इस बार आजादी की इस वर्षगाँठ पर लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री जी बोले और खूब बोले। धाराप्रवाह और जम कर बोले। फिर भी, कुछ लोगों के पेट में तब से ही एक अजीब से राष्ट्रवादी किस्म का दर्द उठ रहा है, जो इतने दिनों के बाद भी रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। उन्हें इस बात की अति पीड़ा है कि उन्होंने जो बोला वह सब तो ठीक है। पर उन्होंने वह सब क्यों नहीं बोला, जो-जो सुनने के लिए उनके कान अरसे से तरस रहे थे। अब वे क्या क्या और क्यों क्यों सुनना चाहते थे? यह तो वे ही जानते हैं या कि फिर उनकी अंतरात्मा और नीयत।

पर सच्चाई तो यह है कि प्रधानमंत्री की बातों से जहाँ इस बार बहुतों को बहुत सारा संतोष हुआ है, वहीं दूसरी तरफ ढेर सारे लोगों को एक ख़ास तरह की निराशा और अवसाद ने आकर घेर भी लिया है। अब पता नहीं कि ये खिली हुयी बांछें ज्यादा दिन खिली रहेंगी या कि फिर आने वाले दिनों में ये भी निराश होकर अवसाद ग्रस्त हो जायेंगे। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि भविष्य में खुशी वाले ग़मगीन होते हैं या ग़मज़दा लोग खुश होते हैं।