"उसे अपनी शक्ल से डर लगता था… क्योंकि जो आईने में दिखता था, वो कभी उसकी आँखों में नहीं दिखा।"और एक रात… आईना खुद दरक गया।--- Scene: रात 1:17 AM – रूम में हल्की रौशनी, दरवाज़ा आधा खुलाशेखर एक पुरानी अलमारी से चांदनी की छोड़ी हुई डायरी निकाल रहा था।पन्ने टूटे-फूटे थे। कुछ पेज गीले, और कुछ जले हुए।आखिरी सही-सलामत लाइन पर उसकी नज़र अटक गई:> "मुझे आईना मत दिखाना, शेखर…क्योंकि आईने में जो चेहरा दिखता">

2 दिन चांदनी, 100 दिन काली रात - 4 बैरागी दिलीप दास द्वारा Horror Stories में हिंदी पीडीएफ

2 Din Chandani, 100 Din Kaali Raat by बैरागी दिलीप दास in Hindi Novels
"कभी हँसी डराती है, कभी डर भी हँसा देता है। लेकिन जब प्यार दोनों बन जाए, तो रातें गुदगुदाने लगती हैं..."? Scene: Jaipur, रात 11:47 PM

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