इस अध्याय में नारी और पुरुष के सपनों के बीच के असमानता पर चर्चा की गई है। यह सवाल उठाया गया है कि क्यों महिलाएं अपने सपनों का पीछा नहीं कर पातीं, जबकि पुरुषों के सपनों को अधिक महत्व दिया जाता है। नारी के सपनों की कीमत को समझने की आवश्यकता है और यह स्पष्ट किया गया है कि परिवार को जोड़ने की जिम्मेदारी केवल महिलाओं की नहीं, बल्कि पुरुषों की भी होनी चाहिए। लेख में कहा गया है कि महिलाओं को अपने सपनों को पूरा करने का हक है और उन्हें अपने बंधनों को तोड़कर अपनी आकांक्षाओं को साकार करने की कोशिश करनी चाहिए। यह सुझाव दिया गया है कि सभी के सपनों की पूर्ति के लिए सामंजस्य और समझौते की आवश्यकता है। अंत में, यह स्पष्ट किया गया है कि नारी और पुरुष दोनों के सपने समान मूल्य रखते हैं और महिलाओं को भी अपने सपनों को साकार करने का अवसर मिलना चाहिए, ताकि एक बेहतर भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।
आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ४
by DILIP UTTAM
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Hindi Women Focused
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Description
-----अध्याय ४."कल्पनाओं के सपने |"----- सपनों की बात की जाए तो पुरुष के सपने-सपने होते हैं, वहीँ नारी के सपने-सपने क्यों नहीं होते? नारियां ही अपने सपनों का गला क्यों घोटती है? क्या सपने नारीलिंगी और पुरुषलिंगी होते हैं, कि पुरुषों के सपने ज्यादा मायने रखते हैं और स्त्रियों के सपनों की कम कीमत होती है? लड़की के केस में यह निर्णय कौन लेगा मां-बाप लेंगे ,भाई लेगा ,पति लेगा या खुद चुनने का अधिकार मिलेगा, जिस तरह लड़कों को अपने सपने चुनने का अधिकार रहता है/मिलता है? समान तरह की आजादी, समान तरह का माहौल नारी को कब
"अर्धांगिनी"----- कहने को अर्धांगिनी कहा जाता है परंतु आधा हिस्सा दिया किसने, आधा हक दिया किसने, और आधा अधिकार/मान-सम्मान दिया किसने, आधा तो...
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