छोटे से कस्बे की गलियों में एक टूटा-फूटा सा मकान था, जहां एक मां-बेटी रहती थीं। मां का नाम सरला था और बेटी का नाम पायल। रिश्ते में मां तो थी सरला, पर जन्म देने वाली नहीं — सौतेली थी।लोग कहते थे — "सौतेली मां कभी सगी नहीं होती।"और पायल भी यही मानकर बड़ी हो रही थी। उसे लगता था कि सरला की हर बात में रोक-टोक है, प्यार नाम की कोई चीज़ उसके लिए नहीं है। जब भी सरला उसे गर्म दूध देती, वो सोचती — "जले हुए होंठों से क्या सच्चा प्यार जताया जा सकता है?"
परवाह - पार्ट 1
छोटे से कस्बे की गलियों में एक टूटा-फूटा सा मकान था, जहां एक मां-बेटी रहती थीं। मां का नाम था और बेटी का नाम पायल। रिश्ते में मां तो थी सरला, पर जन्म देने वाली नहीं — सौतेली थी।लोग कहते थे — "सौतेली मां कभी सगी नहीं होती।"और पायल भी यही मानकर बड़ी हो रही थी। उसे लगता था कि सरला की हर बात में रोक-टोक है, प्यार नाम की कोई चीज़ उसके लिए नहीं है। जब भी सरला उसे गर्म दूध देती, वो सोचती — "जले हुए होंठों से क्या सच्चा प्यार जताया जा सकता है?"जब भी वो ...Read More
परवाह - पार्ट 2
सरला अब ठीक हो चुकी थीं, लेकिन बीमारी ने उनके शरीर को पहले जैसा नहीं रहने दिया था। कभी से काम करने वाले उनके हाथ अब कांपते थे, चलने में दिक्कत होती थी, और याददाश्त भी कई बार उनका साथ छोड़ देती थी। वो वही सरला थीं, जो कभी पूरे घर को अपने दम पर संभालती थीं, और अब किसी के सहारे की ज़रूरत पड़ने लगी थी।पर अब उनके सहारे थी — पायल।वही पायल, जो कभी उनका दिया दूध गिरा देती थी, अब उनके लिए सुबह-सुबह गर्म पानी तैयार करती थी। वही पायल, जो कभी चुपचाप खाना खा लेती ...Read More
परवाह - पार्ट 3
सरला के जाने को अब दो साल बीत चुके थे ।लेकिन उनके बिना पायल का हर दिन अधूरा सा ।वो हर चीज़ में मां को ढूंढती — उनके पुराने चश्मे, वो टूटी रोटी बेलने वाली बेलन, वो हलवे की मिठास… और सबसे ज्यादा — उनकी परवाह ।पायल अब एक स्कूल में पढ़ाती थी — एक N G O स्कूल में, जहां गरीब और अनाथ बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी ।वहीं उसकी मुलाकात हुई " छोटी माही " से।पांच साल की एक नन्हीं सी बच्ची, जो बहुत चुपचाप रहती थी। कोई दोस्त नहीं, कोई हंसी नहीं, आंखों में ...Read More