सुमित्रा वर्मा दिल्ली की एक प्रतिष्ठित बिज़नेस फैमिली से थी। उसके पिता की चाय पत्ती का व्यापार भारत और नेपाल तक फैला था। जब पिता ने उसे नेपाल के काठमांडू प्लांट की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी, तो उसने इसे एक चुनौती की तरह स्वीकार किया। वो महत्वाकांक्षी, आत्मविश्वासी और आधुनिक सोच वाली लड़की थी — जिसे दुनिया जीतने का सपना था। नेपाल की हवा में कुछ अलग था — पहाड़ों की ठंडक, मंदिरों की घंटियों की गूंज, और चाय बगानों की हरियाली में छिपी शांति। पहुँचते ही उसकी मुलाकात हुई सूरज से — जो सबके बीच “कांचा” के नाम से जाना जाता था। सादा कपड़े, ईमानदार नज़रें और चेहरे पर हमेशा एक सच्ची मुस्कान — यही उसकी पहचान थी।

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कांचा - भाग 1

कांचा️ लेखक — राज फुलवरेसुमित्रा वर्मा दिल्ली की एक प्रतिष्ठित बिज़नेस फैमिली से थी। उसके पिता की चाय पत्ती व्यापार भारत और नेपाल तक फैला था।जब पिता ने उसे नेपाल के काठमांडू प्लांट की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी, तो उसने इसे एक चुनौती की तरह स्वीकार किया।वो महत्वाकांक्षी, आत्मविश्वासी और आधुनिक सोच वाली लड़की थी — जिसे दुनिया जीतने का सपना था।नेपाल की हवा में कुछ अलग था — पहाड़ों की ठंडक, मंदिरों की घंटियों की गूंज, और चाय बगानों की हरियाली में छिपी शांति।पहुँचते ही उसकी मुलाकात हुई सूरज से — जो सबके बीच “कांचा” के नाम ...Read More

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कांचा - भाग 2

कांचा — भाग 2लेखक — राज फुलवरेअध्याय 1 — सच्चे दिल की शुरुआतनेपाल की वादियाँ हमेशा की तरह शांत सुबह का सूरज धीरे-धीरे पहाड़ियों के पीछे से निकल रहा था। चाय के बागान पर फैली धुंध जैसे धरती को चूम रही थी। हवा में ताज़ी मिट्टी और कच्चे चाय पत्तों की खुशबू घुली हुई थी। पक्षियों की चहचहाहट के बीच दूर से एक परिचित आवाज़ गूंजी —“कांचा! थोड़ा जल्दी करो, हमें फैक्ट्री पहुँचना है।”वो आवाज़ सुमित्रा की थी — वही जो कभी दिल्ली की बिज़नेस मीटिंग्स में सटीक जवाब देने वाली सख़्त लड़की थी, अब नेपाल के पहाड़ों में ...Read More