जिस दिन मनुष्य ने पहली बार भीतर झाँका — उसे दो धाराएँ दिखीं। एक श्वास के बाएँ बहती हुई, दूसरी दाएँ। और बीच में एक मौन मार्ग — अदृश्य, सूक्ष्म, निर्मल — सुषुम्ना। यही से आत्मयात्रा का विज्ञान शुरू होता है। आधुनिक विज्ञान ने पदार्थ के भीतर विद्युत खोजी, और योग ने चेतना के भीतर वही विद्युत देखी। एक ने इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन कहा; दूसरे ने इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना। नाम अलग, तत्व एक। जहाँ विज्ञान बाहर की मशीनें चलाता है, वहीं यह विज्ञान भीतर की ऊर्जा को रूपांतरित करता है।
कुण्डलिनी विज्ञान - 1
ऊर्जा का विज्ञान — आज्ञा से मूलाधार तक — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲--- प्रस्तावना जिस दिन मनुष्य ने पहली बार झाँका —उसे दो धाराएँ दिखीं।एक श्वास के बाएँ बहती हुई,दूसरी दाएँ।और बीच में एक मौन मार्ग — अदृश्य, सूक्ष्म, निर्मल — सुषुम्ना।यही से आत्मयात्रा का विज्ञान शुरू होता है।आधुनिक विज्ञान ने पदार्थ के भीतर विद्युत खोजी,और योग ने चेतना के भीतर वही विद्युत देखी।एक ने इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन कहा;दूसरे ने इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना।नाम अलग, तत्व एक।जहाँ विज्ञान बाहर की मशीनें चलाता है,वहीं यह विज्ञान भीतर की ऊर्जा को रूपांतरित करता है।यह ग्रंथ उसी रूपांतरण की कथा है —जहाँ “आज्ञा” ...Read More
कुण्डलिनी विज्ञान - 2
अध्याय 6 — सुषुम्ना : मौन की मध्य रेखा सूत्र 4:“द्वैत की थकान से सुषुम्ना खुलती है।”व्याख्या:इड़ा और पिंगला झूला जब बराबर हो जाता है,जब न बाएँ झुकाव रह जाता है, न दाएँ,तब सुषुम्ना जागती है।यह प्रयास से नहीं, संतुलन से घटती है।जैसे तूफान के बाद अचानक शान्ति उतरती है।सूत्र 5:“सुषुम्ना में प्रवेश का अर्थ है — समय से बाहर होना।”व्याख्या:इड़ा में भूत का प्रवाह है,पिंगला में भविष्य का।दोनों के मिलने पर वर्तमान प्रकट होता है।सुषुम्ना में समय रुक जाता है —वह केवल “अब” में बहती है।ध्यान वहीं घटता है।सूत्र 6:“जो मध्य में टिका, वही मुक्त।”व्याख्या:कुण्डलिनी का विज्ञान ...Read More
कुण्डलिनी विज्ञान - 3
कुण्डलिनी विज्ञान — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲अध्याय 10 (विस्तार) — मुख्य नाड़ियाँ और ग्रंथि विज्ञान शरीर में लगभग 72,000 नाड़ियाँ गई हैं —इनमें से तीन प्रधान हैं:इड़ा, पिंगला, और सुषुम्ना।ये तीनों रीढ़ की रेखा के चारों ओर चलती हैं —एक बाईं, एक दाईं, और सुषुम्ना मध्य में।1. सुषुम्ना नाड़ी — ब्रह्म मार्गयह रीढ़ के मध्य से गुजरने वाली सबसे सूक्ष्म और ऊर्ध्वमुखी नाड़ी है।यही कुण्डलिनी का मुख्य मार्ग है।जब ऊर्जा रूपांतरित होकर ऊपर बढ़ती है,तो इसी से होकर सहस्रार तक पहुँचती है।यह चैतन्य की मुख्य धारा है —जहाँ न कोई ऋण है, न आवेश — केवल मौन प्रकाश।2. इड़ा नाड़ी ...Read More