ख़ामोश मोहब्बत.

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पुरानी दिल्ली की गलियों में एक हवेली थी — *हवेली-ए-नूरजहाँ*। वक़्त की गर्द ने इसकी दीवारों को ज़रूर थका दिया था, लेकिन इसकी खिड़कियों से अब भी मुहब्बत झांकती थी। उसी हवेली में रहती थी *ज़ैनब* — खामोश सी, किताबों से मोहब्बत करने वाली लड़की। उसकी आँखों में एक समंदर था — गहरा, मगर शांत। ज़ैनब का सबसे पसंदीदा वक़्त था शाम का, जब वह हवेली की छत पर बैठकर किसी पुरानी उर्दू किताब में डूबी होती और कभी-कभी अपने अब्बा की छोड़ी हुई डायरी पढ़ती, जिसमें शायरी के लफ़्ज़ अब भी महकते थे। एक रोज़ वह पुरानी किताब की तलाश में *बिस्मिल किताब घर* पहुंची — एक तंग सी गली में बसी छोटी सी दुकान, जहाँ किताबें दीवारों की तरह खड़ी थीं और वक़्त ठहर जाता था।

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ख़ामोश मोहब्बत - 1

पुरानी दिल्ली की गलियों में एक हवेली थी — *हवेली-ए-नूरजहाँ*। वक़्त की गर्द ने इसकी दीवारों को ज़रूर थका था, लेकिन इसकी खिड़कियों से अब भी मुहब्बत झांकती थी। उसी हवेली में रहती थी *ज़ैनब* — खामोश सी, किताबों से मोहब्बत करने वाली लड़की। उसकी आँखों में एक समंदर था — गहरा, मगर शांत।ज़ैनब का सबसे पसंदीदा वक़्त था शाम का, जब वह हवेली की छत पर बैठकर किसी पुरानी उर्दू किताब में डूबी होती और कभी-कभी अपने अब्बा की छोड़ी हुई डायरी पढ़ती, जिसमें शायरी के लफ़्ज़ अब भी महकते थे।एक रोज़ वह पुरानी किताब की तलाश में ...Read More

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ख़ामोश मोहब्बत - 2

*कहानी का नाम: "ख़ामोश मोहब्बत – भाग 2"* *(जहाँ मोहब्बत ने इम्तिहान लिया, वहीं तक़दीर ने राह दिखाई…)* ---रौशनी पीली किरणें बनारस की गलियों में शराब-सा फैल रही थीं। घाटों पर गंगा का पानी धीमी आवाज़ में गीत गा रहा था, और हवाओं में एक अजीब सी तन्हाई थी — जैसे ज़माने की हर भीड़ ने खुद को सुनाया हो कि यहाँ कोई मोहब्बत अधूरी खड़ी है।ज़ैनब की ज़िन्दगी अब उस लाइब्रेरी की ख़िड़की से शुरू होती थी, जहां वह शहादत-ए-इश्क़ की शख्सियत बन चुकी थी। हर सुबह हठपूर्वक उठती, दुपट्टा संभालती और बाहर निकलती — जैसे उसका हर ...Read More