जीवन का विज्ञान

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यह ग्रंथ किसी विश्वास का प्रतिपादन नहीं करता — यह केवल जीवन को देखने की दृष्टि है। जो भीतर घटता है, वही बाहर फैलता है; जो शरीर में है, वही ब्रह्मांड में। यहाँ विज्ञान और अध्यात्म दो नहीं — विज्ञान तत्वों की गति बताता है, और अध्यात्म उस गति के मौन को। जब दोनों मिलते हैं, तभी मनुष्य पूर्ण होता है — न केवल जीवित, बल्कि सचेत। यह ग्रंथ उसी संतुलन की यात्रा है — जहाँ देह का विज्ञान आत्मा के विज्ञान में विलीन हो जाता है, और जीवन मृत्यु में नहीं, मौन में लौटता है।

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जीवन का विज्ञान - 1

जीवन का विज्ञान देह, मन, आत्मा और मृत्यु का संतुलित रहस्य — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲--- ग्रंथ-मंत्र “जीवन बहता —मृत्यु ठहरती नहीं, बस दिशा बदलती है।जो भीतर की गति को समझ ले,वह बाहर की दुनिया से कभी नहीं खोता।”--- प्रस्तावना यह ग्रंथ किसी विश्वास का प्रतिपादन नहीं करता —यह केवल जीवन को देखने की दृष्टि है।जो भीतर घटता है, वही बाहर फैलता है जो शरीर में है, वही ब्रह्मांड में।यहाँ विज्ञान और अध्यात्म दो नहीं —विज्ञान तत्वों की गति बताता है,और अध्यात्म उस गति के मौन को।जब दोनों मिलते हैं,तभी मनुष्य पूर्ण होता है —न केवल जीवित, बल्कि सचेत।यह ग्रंथ ...Read More

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जीवन का विज्ञान - 2

आत्मा, मन और पंचतत्व — एक ही लय की तीन अवस्थाएँशरीर पंचतत्वों का खेल है — पृथ्वी, जल, अग्नि, और आकाश।ये जब असंतुलन में आते हैं, तो आकार लेते हैं — “मैं” का।और जब संतुलन में लौटते हैं, तो विलीन हो जाते हैं — “शून्य” में।इस पूरे खेल का केन्द्र आत्मा कहलाता है।पर यह आत्मा कोई स्थायी जीवात्मा नहीं — यह उन्हीं पाँच तत्वों का सूक्ष्म संकेंद्रण है,जैसे आँधी में बवंडर उठता है, वैसे ही पंचतत्वों की गति से चेतना का केंद्र बनता है।यह केंद्र ही “मैं” का अनुभव देता है — पर यह अलग अस्तित्व नहीं, तत्वों की ...Read More