संस्कृति का पथिक

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हर यात्रा केवल दूरी तय करने का नाम नहीं होती। कभी-कभी वह यात्रा मन, आत्मा और अनुभवों की होती है, जो हमें जीवन के भीतर गहराई से झांकने का अवसर देती है। मेरी यात्रा भोपाल से शुरू होकर भोजपुर, भीमबेटका, साँची, उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मांडू, दतिया, ग्वालियर, ओरछा, चित्रकूट, अमरकंटक और जबलपुर तक फैली यह यात्रा, केवल भौगोलिक स्थलों की यात्रा नहीं, बल्कि इतिहास, धर्म, प्रकृति और आत्मिक अनुभवों का संगम है। इस पुस्तक में प्रस्तुत यात्रा वर्णन केवल स्थलों का विवरण नहीं है। यह उन अनुभवों, भावनाओं और स्मृतियों का संग्रह है, जो मैंने प्रत्येक स्थल पर जाकर मैंने स्वयं महसूस की।

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संस्कृति का पथिक - 1

"संस्कृति का पथिक"प्रस्तावनाहर यात्रा केवल दूरी तय करने का नाम नहीं होती। कभी-कभी वह यात्रा मन, आत्मा और अनुभवों होती है, जो हमें जीवन के भीतर गहराई से झांकने का अवसर देती है। मेरी यात्रा भोपाल से शुरू होकर भोजपुर, भीमबेटका, साँची, उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मांडू, दतिया, ग्वालियर, ओरछा, चित्रकूट, अमरकंटक और जबलपुर तक फैली यह यात्रा, केवल भौगोलिक स्थलों की यात्रा नहीं, बल्कि इतिहास, धर्म, प्रकृति और आत्मिक अनुभवों का संगम है।इस पुस्तक में प्रस्तुत यात्रा वर्णन केवल स्थलों का विवरण नहीं है। यह उन अनुभवों, भावनाओं और स्मृतियों का संग्रह है, जो मैंने प्रत्येक स्थल पर जाकर ...Read More

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संस्कृति का पथिक - 2

पार्ट-2संस्कृति का पथिकभोजपुर से निकलते समय सूरज अपनी सुनहरी किरणों से आसमान को ऐसे रंग रहा था मानो शिव अपनी जटाओं से आशीर्वाद बरसा रहे हों। मन अभी भी भोजेश्वर के मंदिर की निस्तब्धता में था — उस विराट शिवलिंग की छवि आँखों में बस चुकी थी।कार ने जैसे ही भोजपुर की घाटियों को छोड़ा, सड़कें धीरे-धीरे जंगलों और पथरीली चट्टानों की ओर मुड़ने लगीं। मेरी अगली मंज़िल थी "भीमबेटका"।यह स्थान यहाँ से लगभग 30 किलोमीटर दूर, विंध्य पर्वत की तलहटी में स्थित है। भीम बेटका का नाम का स्मरण होते ही महाभारत के भीम की छवि मेरे दीमाग ...Read More

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संस्कृति का पथिक - 3

संस्कृति का पथिकपार्ट -3भीमबेटका और सांची की आध्यात्मिक यात्रा के बाद, जब मैं वापस भोपाल की ओर लौट रहा तो दिन ढल चुका था। सड़कें अब शांत हो रही थीं, हल्की ठंडी हवा चेहरे से टकरा रही थी और आसमान पर रात के सितारे अपनी चमक बिखेर रहे थे। मन में एक अजीब-सी संतुलन और शांति थी — जैसे दिनभर की यात्रा ने केवल शरीर को थकाया नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी संवारा हो।भोपाल पहुँचते ही सबसे पहले मेरी नजर पड़ी बड़ा तालाब की ओर। इस शहर की खूबसूरती यही है कि आधुनिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का ...Read More

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संस्कृति का पथिक - 4

संस्कृति का पथिकपार्ट-4भोपाल में एक शांत रात बिताने के बाद, सुबह की पहली किरणों के साथ मैंने अपनी यात्रा शुरू की। मन में हल्की उत्सुकता और आत्मा में नया जोश था — आज की मंज़िल थी सलकनपुर जो भोपाल से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं मुझे रात में ही मन में माँ के आह्वान का एहसास हो चुका था सुबह का समय था। सूरज की किरणें जैसे भोपाल की गलियों में स्वर्ण रेखाएँ खींच रही थीं। मैंने होटल से प्रस्थान किया — मन में भक्ति का उत्साह, आँखों में माँ के दर्शन की प्रतीक्षा। रास्ता जैसे-जैसे ...Read More