बीमार मन की स्मृतियाँ बीमार मन की खिड़कियों पर स्मृतियों की धूल जमी रहती है, कभी कोई हंसी की आहट उस धूल में उँगलियाँ फेर जाती है, और कभी कोई रोष, शांत कोनों में फफूँदी बनकर उग आता है। स्मृतियाँ— वे अधूरी कविताएँ हैं जो लिखी तो गईं, पर कभी पूरी न हो सकीं। वे टूटे हुए सपनों की किरचें हैं जिन पर चलते-चलते मन के तलवे छिल जाते हैं।
स्याही के शब्द - 1
1-️ बीमार मन की स्मृतियाँबीमार मन की खिड़कियों परस्मृतियों की धूल जमी रहती है,कभी कोई हंसी की आहटउस धूल उँगलियाँ फेर जाती है,और कभी कोई रोष,शांत कोनों में फफूँदी बनकर उग आता है।स्मृतियाँ—वे अधूरी कविताएँ हैंजो लिखी तो गईं,पर कभी पूरी न हो सकीं।वे टूटे हुए सपनों की किरचें हैंजिन पर चलते-चलतेमन के तलवे छिल जाते हैं।बीमार मन जानता हैकि समय ही एक चिकित्सक है,पर समय की दवाधीरे-धीरे असर करती है—मानो गहरे कुएँ में डालीएक-एक बूंद पानी।कुछ स्मृतियाँफफोलों जैसी हैं—छूने पर दर्द देती हैं,और कुछ,जैसे बुझ चुकी अग्नि की राखजो बस उँगलियों परधूसर निशान छोड़ जाती है।बीमार मन फिर ...Read More
स्याही के शब्द - 2
11-️ तलाश में उलझनरिश्तों की गहराई भूलकर,बंधन की मर्यादा तोड़कर,वो स्क्रीन पर सज रही है—मानो ज़िंदगी का सचअब कैमरे झिलमिलाहट में ही छिपा हो।सोशल मीडिया के मंच परफ़ूहड़ता का तमाशा बिक रहा है,जहाँ सादगी मज़ाक बन चुकी है,और उघाड़ापन ही "आधुनिकता" कहलाता है।कभी बहन, कभी बेटी, कभी माँ—इन रूपों की गरिमा कहाँ खो गई?किस तलाश में है वो?क्या कुछ पल की तालियों मेंउसकी आत्मा की प्यास बुझ जाएगी?शायद पहचान की भूख है,शायद अकेलेपन की चुभन है,या शायददुनिया के शोर मेंअपने ही मौन को दबाने का प्रयास।पर क्या सचमुच यही तलाश है—कि रिश्तों की मर्यादाएँ गिरवी रखकरवह वर्चुअल तालियों का ...Read More