जीवनोपनिषद (प्रथम पुस्तक) प्रस्तावना सदियों से मनुष्य सत्य की खोज में है।कभी उसने वेदों का सहारा लिया,कभी उपनिषदों की गहराई में उतरने की कोशिश की,कभी गीता सुनी, कभी शास्त्र पढ़े।वह मंदिर गया, मठों में बैठा, साधुओं का अनुसरण किया। फिर भी जीवन का असली रहस्य उसके हाथ नहीं आया। क्यों?क्योंकि मनुष्य हमेशा “पाने” की दौड़ में रहा।और सत्य “पाने” से नहीं मिलता।सत्य तो तब प्रकट होता है जब पाने की भूख ही मिट जाती है। धर्म ने उपाय गढ़े —जप, तप, व्रत, उपवास, साधना।मनुष्य को लगा कि इन उपायों से जीवन का परम रहस्य खुल जाएगा।पर उपाय ही बाधा बन गए।सत्य उपायों
जीवनोपनिषद - 1
जीवनोपनिषद (प्रथम पुस्तक) प्रस्तावना सदियों से मनुष्य सत्य की खोज में है।कभी उसने वेदों का सहारा लिया,कभी उपनिषदों की में उतरने की कोशिश की,कभी गीता सुनी, कभी शास्त्र पढ़े।वह मंदिर गया, मठों में बैठा, साधुओं का अनुसरण किया।फिर भी जीवन का असली रहस्य उसके हाथ नहीं आया।क्यों?क्योंकि मनुष्य हमेशा “पाने” की दौड़ में रहा।और सत्य “पाने” से नहीं मिलता।सत्य तो तब प्रकट होता है जब पाने की भूख ही मिट जाती है।धर्म ने उपाय गढ़े —जप, तप, व्रत, उपवास, साधना।मनुष्य को लगा कि इन उपायों से जीवन का परम रहस्य खुल जाएगा।पर उपाय ही बाधा बन गए।सत्य उपायों ...Read More
जीवनोपनिषद - 2
जीवोपनिषद 2 (अध्याय-सूची / 21 अध्याय) 1. प्रस्तावना – गलत प्रश्न नहीं, अधूरे उत्तर हैं दुःख के चार कारण – इच्छा, अज्ञान, प्रेम की कमी, असंतुलन 3. इच्छा का रहस्य – आत्मा की प्यास और मन का भ्रम 4. ज्ञान और अहंकार – ज्ञानी होना भी एक जाल 5. संतुलन की लय – गति और ठहराव का मेल 6. श्वास का उपनिषद – प्रथम ईश्वर और अंतिम सहारा 7. भोजन–पानी–प्राण – शरीर और आत्मा का संयुक्त आहार 8. मन और मैं – ...Read More