भारत की भक्ति परम्परा में मीरा बाई का नाम अमर है। वे केवल एक कवयित्री नहीं थीं, बल्कि वे भक्ति, प्रेम और समर्पण का जीवित स्वरूप थीं। 16वीं शताब्दी का राजस्थानी समाज जहाँ वीरता और सामन्ती मर्यादाओं का प्रतीक था, वहीं मीरा ने उस कठोर वातावरण में अपने जीवन को कृष्ण भक्ति में डुबो दिया। उनके जीवन की कहानी केवल एक स्त्री की कथा नहीं है, बल्कि यह उस युग के समाज, धर्म और संस्कृति का दर्पण भी है।
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मीरा बाई : कृष्ण भक्ति की अमर साधिका - 1
भाग 1 – जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन (लगभग 2000 शब्द) प्रस्तावनाभारत की भक्ति परम्परा में मीरा बाई का अमर है। वे केवल एक कवयित्री नहीं थीं, बल्कि वे भक्ति, प्रेम और समर्पण का जीवित स्वरूप थीं। 16वीं शताब्दी का राजस्थानी समाज जहाँ वीरता और सामन्ती मर्यादाओं का प्रतीक था, वहीं मीरा ने उस कठोर वातावरण में अपने जीवन को कृष्ण भक्ति में डुबो दिया। उनके जीवन की कहानी केवल एक स्त्री की कथा नहीं है, बल्कि यह उस युग के समाज, धर्म और संस्कृति का दर्पण भी है।--- जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमिमीरा बाई का जन्म 1498 ईस्वी के ...Read More