“इस रिश्ते में मैं कभी तुम्हारी पहली पसंद थी ही नहीं… थी न?” पाँच साल पहले जब शहनाज़ की ज़िंदगी जबरन एक अनचाही शादी में बाँध दी गई, तब उसने सोचा था — वक़्त सब कुछ ठीक कर देगा। लेकिन वक़्त के साथ सिर्फ़ उसका सब्र टूटा… प्यार नहीं मिला। आरामदेह घर, सामाजिक इज़्ज़त, सब कुछ था… बस नहीं था तो उसका हक़, उसकी पहचान, और उसके पति का प्यार। वो हर रात उसकी बाहों में थी, लेकिन उसकी आँखों में नहीं।
Full Novel
अनचाही मोहब्बत - 1
अनचाही मोहब्बत इस कहानी के 2 भाग होंगे!एक छोटी कहानी आपके लिए !प्रोमो! “इस रिश्ते में कभी तुम्हारी पहली पसंद थी ही नहीं… थी न?” पाँच साल पहले जब शहनाज़ की ज़िंदगी जबरन एक अनचाही शादी में बाँध दी गई, तब उसने सोचा था — वक़्त सब कुछ ठीक कर देगा। लेकिन वक़्त के साथ सिर्फ़ उसका सब्र टूटा… प्यार नहीं मिला। आरामदेह घर, सामाजिक इज़्ज़त, सब कुछ था… बस नहीं था तो उसका हक़, उसकी पहचान, और उसके पति का प्यार। वो हर रात उसकी बाहों में थी, लेकिन उसकी ...Read More
अनचाही मोहब्बत - 2
अनचाही मोहब्बतभाग 2 — मोहब्बत जो जन्मी खामोशी सेशहनाज़ को याद था, वो रात जब हसन पहली बार खुलकर था। उसने कहा था — "मैं कोशिश करना चाहता हूँ।" और किसी जले हुए रिश्ते के लिए, यह शब्द किसी बारिश की बूँद की तरह होते हैं — छोटी सी, मगर राहत देने वाली।उसके बाद सबकुछ एकदम नहीं बदला। पर कुछ-कुछ बदलने लगा था।अब हसन उसे सुबह "गुड मॉर्निंग" कहता था।अब वो चाय की प्याली थमा कर लौटती नहीं थी — बैठती थी, साथ में चुपचाप चाय पीती थी।और कभी-कभी, उस चुप्पी में भी एक सुकून था।हसन अब घर देर ...Read More