फिर से शुरू करूँ

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स्थान: गांव का चौपाल समय: शाम ढलने का वक्त बड़ा पीपल का पेड़ झूम रहा है। कुछ बुज़ुर्ग और नौजवान बैठे हैं। महिलाएं थोड़ी दूरी से सुन रही हैं। बच्चे खेलते-खेलते धीरे-धीरे पास आ रहे हैं। ठंडी हवा बह रही है, पक्षियों की आवाज़ें धीरे-धीरे कम हो रही हैं, धुंध-सी फैल रही है। --- [बुजुर्ग रामलाल (हुक्का गुड़गुड़ाते हुए)] "अरे सुना है महापालकी कल से निकले वाली है... सौ साल में एक बार चलती है... और पूरा एक महीना चलेगी।" [शिवू (गांव का मज़ाकिया नौजवान)] "सौ साल में एक बार? मतलब भगवान भी रिटायरमेंट के बाद ड्यूटी पर लौटते हैं!" (सब हँसते हैं) [दादी सोमवती (गंभीरता से)] "मज़ाक मत कर शिवू। वो भगवान-स्थान है… वहां भगवान खुद रहते हैं… इंसानों के साथ, एकदम इंसान जैसे। पर वहां कोई आम आदमी नहीं जा सकता।"

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फिर से शुरू करूँ - 1

📌 नोट: कहानी में जहाँ-जहाँ 'Aman' लिखा गया है, वह वास्तव में 'Amar' होना चाहिए। यह एक टाइपिंग त्रुटि है। इसे सही अर्थ में 'Amar' के रूप में पढ़ें। आपके धैर्य और समझदारी के लिए धन्यवाद। भूलाया गया गाँव” — एक रहस्यपूर्ण कथा की भूमिका बहुत समय पहले, एक ऐसा गाँव था जिसे मानो इस दुनिया से मिटा दिया गया हो। वह गाँव इतना दूर और अलग-थलग था कि न उसके रास्ते पर कोई आता था, न वहाँ से कोई ... ...Read More

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फिर से शुरू करूँ - 2

दृश्य 4:⏳ समय: दोपहर की बेला स्थान: गाँव का मुख्य चौराहा – मंदिर मार्ग️ माहौल: सजी हुई गलियाँ, भीड़ उत्तेजना और एक रहस्यमयी शांति---[EXT. गाँव – दोपहर का समय]सूरज सिर पर था, फिर भी एक अजीब-सी रोशनी आकाश से धीरे-धीरे उतर रही थी।वो रोशनी इतनी चमकीली थी कि उसकी सफ़ेदी में सूरज की गर्मी तक मद्धम पड़ गई।उस रोशनी में तीन पालकियाँ ज़मीन पर उतरीं।हर पालकी में एक दिव्य आकृति विराजमान थी — इंसानों जैसी, मगर कुछ और ही थीं।उनके चेहरे पर ऐसी सुंदरता, जैसे समय ने भी रुककर उन्हें तराशा हो।एक हल्की सी मुस्कान — इतनी कोमल ...Read More