सर्वथा मौलिक चिंतन

(5)
  • 5.3k
  • 0
  • 1.7k

मित्रों उपनिषद कहता है सर्व खल्विदं बृम्ह,सबकुछ परमात्मा है मै ऐक पुजारी खानदान मे पैदा हुआ,मेरा परिवार घोर रूढिवादी रहा है । किंतु मैने पोटग्रेजुऐशन साईंस मेथ्स से किया है अतः मुझमें हर विचार को तर्क की दृष्टि से देखने की पृवृत्ति है। मैने उपनिषद व वेदान्त का अध्ययन बचपन मे ही कर लिया था । मैने आज से 60 वर्ष पूर्व ऐक दिन जब जे कृष्णमूर्ति को पढ़ा तो मै उनके मौलिक विचारों को पढ़कर दंग रह गया । मेरी समस्त मान्यताएँ पूर्णतया हिल गई, मेरी ही नही वे सम्पूर्ण मानव जाति की आज तक की सभी सहस्रों वर्षों से चली आ रही मान्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं । फिर भी वे पृकृति की किसी वस्तु जैसे पहाड़, नदी, व्रक्ष, पक्षी, समंदर या महिला को देखकर समाधिस्थ होता जाते थे ।

1

सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 1

भूमिका मित्रों उपनिषद कहता है सर्व खल्विदं बृम्ह,सबकुछ परमात्मा है मै ऐक पुजारी खानदान मे पैदा हुआ,मेरा परिवार घोर रहा है । किंतु मैने पोटग्रेजुऐशन साईंस मेथ्स से किया है अतः मुझमें हर विचार को तर्क की दृष्टि से देखने की पृवृत्ति है। मैने उपनिषद व वेदान्त का अध्ययन बचपन मे ही कर लिया था । मैने आज से 60 वर्ष पूर्व ऐक दिन जब जे कृष्णमूर्ति को पढ़ा तो मै उनके मौलिक विचारों को पढ़कर दंग रह गया । मेरी समस्त मान्यताएँ पूर्णतया हिल गई, मेरी ही नही वे सम्पूर्ण मानव जाति की आज तक की सभी सहस्रों ...Read More

2

सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 2

22 पलायन हम हमेशा इस या उस गतिविधियों मे व्यस्त रहते हैं। कभी किताब पढ़ते हैं ,कभी बातों मे रहते हैं ,कभी मूवी ऐंटरमेंट मे मजे लेते रहते हैं । व्यस्त रहना ,माइंड को खाली न रखना ऐक आदर्श सराहनीय कार्य माना जाता है । किंतु हम खाली क्यों नही रहते । हम जैसे हैं, जो हैं, उसके साथ क्यों नहीं रहते । हमारा असली रूप हमें असहनीय क्यों लगता है । हम स्वयं से बुक के द्वारा ,मूवी ऐंटरमेंट ,कथा वार्ता ,और न जाने क्या क्या जरिये से भागते रहते हैं। हम स्वयम् को दुनिया भर की चीजों ...Read More

3

सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 3

हमेशा भूतकाल की चर्चा प्रायः लोग व्यर्थ वार्तालाप मे बड़ा रस लेते हैं। वे कभी वर्तमान मन नहीं रहते वर्तमान को भूतकाल की नजरों सकता देखते हैं । हमारे सारे ़र्म रीति रिवाज सब भूतकाल से सम्बद्ध है । हम मुर्दों की पूजा करते हैं ,सदा गढ़े मुर्दे उखाड़ने मे लगे रहते हैं। वह सत्य अभी वर्तमान मन है । कितु हम सदैव वर्तमान टकी अनदेखी. करते हैं । आत्मा किसी के काम नहीं आती कृष्णमूर्ति के पास ऐक दिन ऐक दम्पत्ति मिलने आऐ । उनके ऐकमात्र पुत्र का निधन हो गया था । उन्होंने सोचा कृष्णजी उन्हें ...Read More

4

सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 4

यथार्थ चिंतन भाग 4 कृपया yatharth chintan ग्रुप से जुड़े व्हाट्सएप 9424051923 जेकृष्णमूर्ति के मौलिक विचारों कौ खोज बताकर अनेक आचार्यों, गुरूओं ने लच्छेदार भाषण की कलाबाजी से सम्मोहित लोगो को खूब भृमित किया व खूब पैसा, पृसिद्धी व पृचार कमाया वहीं कृष्णमूर्ति ने अपार पैसा पृसिद्धी, अवतार पद सबकुछ त्याग दिया किंतु कच्चे दिमाग के लोग पृसिद्धी, ढोंग व भाषणकला से बहुत पृभावित होते हैं। जबकि अध्यात्म मे भाषण, शब्द कला की कोई जगह नहीं है । अनेक पूर्णसिद्धी प्राप्त संत मौन रहते हैं, रमण महर्षि की दीक्षा ही मौन थी । रूढ़िवादिता व पुरानी मान्यताओं ...Read More