एक स्त्री अपने सुहाग का जोड़ा पहने अपने बंद कमरे में मध्यम सी रौशनी में खुद को आईने में देख कर आँसू बाह रही है. बार-बार उसका हाथ सिंदूर और मंगल सूत्र की और बढ़ता है लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह उन्हें लाग ले अचानक खिड़की के बाहर से शोर सुनाई देता है "अरे-अरे चलो-चलो चाँद निकल आया है " वह महिला भी खिड़की के पास जाकर देखती है उसे बहुत सी स्त्रियां सजी धजी हाथों में पूजा की थाली लिए एक ओर जाति दिखाई देती हैं. उसके चेहरे पर भी एक पल के लिए मुस्कान आजाती है. अगले ही पल, उसकी उदास आँखों से आँसुओं की दो बुंदे टपक जाती है और वह जल्दी से अपना चेहरा छिपा कर वहां से हट जाती है कि कहीं को देख ना ले और अपने पलंग पर अपने कानों को दोनों हाथों से बंद कर लेती है ताकि बाहर हो रही त्यौहार की हलचल उसे और ज्यादा परेशान और दुखी ना करे.
बदलाव ज़रूरी है भाग -1
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब, आशा है सब बढ़िया ही होंगे. आगे कुछ भी कहने से पहले आप को अँग्रेजी केलेण्डर के नववर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनायें मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आप सभी स्वस्थ रहे मस्त रहे ....! परिचय तो दोस्तों जैसा के आप सभी जानते ही हैं कि आजकल एकल कहानियों के बजाय सिरीज़ का ज़माना है धारावाहिक भी अब लोगों को उतने पसंद नहीं आते इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने एक बार फिर कुछ अलग लिखने का प्रयास किया इस उम्मीद के साथ कि जितना प्यार आप सभी ने मेरी ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग -2
तो लीजिये दोस्तों बदलाव ज़रूरी है की कहानी श्रंखला में पेश है दूसरी कहानी जिसका शीर्षक है मौसम शादियों ...! एक अमीर बाप की बेटी की शादी में उसके माँ -बाप ने इवेंट मैनेजमेंट वाली पार्टी को पैसों का चेक देते हुए कहा "देखो हमें सब कुछ एकदम परफेक्ट चाहिए, किसी भी कार्यक्रम में हमें किसी भी तरह की कोई कमी पेशी नहीं चाहिए समझें...! अगर कुछ भी गड़बड़ हुई तो समझ लेना तुम सब की खैर नहीं...! और हाँ शादी में आने वाले आम और गरीब लोगों के लिए भी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जब वो यह ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग -3
बदलाव ज़रूरी है शृंखला में लीजिये पेश है मेरी तीसरी कहानी कानून व्यवस्था और न्याय पंकज एक बहुत ही आम सा दिखने वाला एक मामूली इजीनियर है लेकिन प्रतिष्ठा एक बहुत ही खूबसूरत गोरी चिट्टी किन्तु कम पढ़ी लिखी महिला है. जिसके पापा के पास बहुत पैसा है और उनका यही पैसा देखकर पंकज के पापा ने मोटी रकम के नाम पर अपने सीधे सादे पंकज की शादी प्रतिष्ठा से ही कर देना उचित समझा क्यूंकि उन्हें लगता था अपनी नौकरी के चलते तो वह पंकज को कभी कोई सुख दे नहीं पाए, कम से कम शादी के बाद ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग -4
बदलाव जरूरी है शृंखला में लीजिये पेश है चौथी कहानी जिसका शीर्षक है बिल्लू गरीब तबके के लोग या लोग जो कहीं से पलायन करके कहीं और पहुंचे हैं. यहाँ एक देश से दूसरे देश वाले पलायन की बात नहीं हो रही है बल्कि गाँव से शहर आने वाले लोग जो आय बढ़ाने के चक्कर में अपने स्थान को छोड़कर, घर परिवार को छोड़कर गाँव से शहर चले आते हैं और फिर अत्यधिक गरीबी, यहाँ तक के निजी जरूरतों के अभाव में अपना जीवन व्यतीत करते रहते है. वह भी अपने जीवन में संघर्ष करते -करते यह बात बखूबी ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग -5
बदलाव ज़रूरी है शृंखला में लीजिये प्रस्तुत ही एक और नयी कहानी जिसका शीर्षक है आदतें हर किसी की ना कोई आदत जरूर होती है. किसी की अच्छी तो किसी की बुरी. कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से ना अच्छा होता है ना ही बुरा. सभी में थोड़ी बहुत अच्छाई और थोड़ी बहुत बुराई जरूर होती है. एक आंटी अपनी बेटी के घर आयी. जो कि एक छोटे शहर से आयी थी. एक ऐसा शहर जहाँ अब भी उनकी उम्र के लोगों के लिए उनका पुराना समय पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ था. जहाँ अब भी पड़ोसी को ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग -6
"बदलाव ज़रूरी है" श्रंखला में लीजिये प्रस्तुत है मेरी छठी कहानी जिसका शीर्षक है यह कोई मनोरोग नहीं है पूंजीपति व्यक्ति के घर उसकी बूढ़ी हो रही बहन जिसे मानसिक रोग की समस्या के चलते एक मनोचिकित्सक देखने उनके घर आया करती थी. एक दिन जब वह हमेशा की तरह अपनी मरीज को देखने आयी तो उसे बगल वाले कमरे से कुछ आवाज़ें सुनाई दे रही थी. लेकिन उसने देखा उन आवाजों का असर उसकी मरीज के व्यवहार पर साफ देखा जा सकता था. अचानक वह लड़की बहुत डर गयी उसने अपनी उस डॉक्टर को पहचाने से भी इंकार ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग -7
बदलाव ज़रूरी है शृंखला में लीजिये पेश है मेरी सातवी कहानी जिसका शीर्षक है सपने भी ज़रूरी है एक में चार लोग रहा करते थे पति पत्नी और उनके दो बच्चे जिसमें से एक बेटा था और एक बेटी, घर के मुखिया अर्थात पिता जी का एक छोटा सा होटल था. जिसमें कोई ख़ास सुविधाएं नहीं थी. बस यूँ समझ लीजिए की नाश्ते के साथ -साथ कुछ थोड़ी बहुत मिठाई और पानी सोडा आदि.बस और कुछ खास नहीं और जो घर की करता धर्ता थी वह थी उनकी धर्मपत्नी अर्थात उन दो बच्चों की माँ जो घर से ही ...Read More
बदलाव ज़रूरी है भाग - 8
लीजिये पेश है इस शृंखला की आठवी कहानी जिसका शीर्षक है वृद्ध आश्रम एक वृद्ध आश्रम को चलाने वाली NGO के कार्यक्रम में पत्रकारों के सामने बड़ी -बड़ी बातें करते हुए देवयानी कह रही थी कि "कहते है जिस घर में बुज़ुर्ग हँसते हुए रहते है, उस घर में देवताओं का वास होता है. लेकिन आज के इस भौतिक युग में बुज़ुर्गों का हँसना और खुश रहना तो दूर की बात है आजकल तो घर के बुज़ुर्ग घर के पुराने समान की तरह हो गए हैं. जिन्हें बेकार का सामान समझ कर उनके अपने ही बच्चे, पहले उनके एकल ...Read More