अपना पुरा ब्रम्हांड चक्राकार रुप में घुमता रहता है। उसकी घुमने की प्रक्रिया बहुत ही धीरे से चलती रहती है। कभी-कभी व्यक्ति जीवन के सफर में पिसते हुए ऐसे निर्णायक मोड पर आकर रुकता है की संसार में सिर्फ दुःख, कष्ट बिमारिया ही फैली हुई है। ऐसे जगत में रहना अब हमे मंजुर नही, तब व्यक्ति साधनाद्वारा इस भवसागर से मुक्त हो सकता है। फिर वह साधना किसी भी रुप में हो। जगत में साधना विधी के अनेक प्रकार मौजुद है, जैसे जिसकी इच्छा या स्वभाव के अनुसार व्यक्ति साधना विधी को अपनाता है। यहाँ झेनयोग के बारे में कुछ बताना चाहती हूँ।
स्पंदन - 2
३: अमरत्व एक गाँव में वैद्य रहा करता था। लोगों को जडी-बुटी देकर उनके रोग दूर करता इसके साथ वह दावा करता की अमरत्व की रहस्यता मुझे ज्ञात है। लोग बडे आँस लगाए उसके पास आते थे, क्युँ की कौन चाहेगा मरना? बहुत पैसा लेकर वह अमरत्व के नाम ...Read More
स्पंदन - 3
६ : मैले कपडे जपान के ओसाका शहर के नजदिक, एक छोटे गाव में एक झेन मास्टर थे। उनकी विद्वत्ता की किर्ती सर्वदूर फैली हुई थी। विश्व के कोने-कोने से लोग उनसे मिलने आते ओैर अपने शंकाओं का समाधान करते थे। एक दिन अमृतबेला के समय झेन मास्टर अपने एक ...Read More
स्पंदन - 4
८: स्वर्ग-नरक एक दिन झेनगुरू ओैर ईश्वर में ज्ञानचर्चा चल रही थी। झेनगुरूं ने ईश्वर से पुछा भगवन, मुझे स्वर्ग-नरक कैसे दिखते है यह जानने की बडी उत्सुकता है।” ईश्वर झेनमास्टरजी को लेकर, जहाँ स्वर्ग-नरक के दो दरवाजे थे वहाँ पहुँच गए। जब पहला दरवाजा खुल गया तब मास्टरजी ने देखा, एक ...Read More
स्पंदन - 5
१०: ध्येय एक बार झेन मास्टरजीने सोचा की अब अपने शिष्यों का इम्तहान ले लेते है। अमावस रात उन्होंने सब शिष्यों को इकठ्ठा किया ओैर एक विशालकाय परबत के पास पहुँच गए। रात को ठीक से रास्ता दिख जाए इसलिए सब शिष्यों के हाथ में उन्होंने एक लालटेन देके रखी थी। परबत की ...Read More
स्पंदन - 6
१७: मौन का मंदिर साक्षात्कार प्राप्त हुए चुका शोईची, अपने शिष्यों को, तोफुकू मंदिर में सिखाते थे। दिन-रात ओैर पुरे परिसर में मौनपुर्ण शांती फैली हुई थी। किसी भी तरह का आवाज, कलकलाहट वहाँ सुनाई नही देता, एक अबुज शांती पुरे वातावरण से भरी हुई थी। शोईची गुरु अब मंत्रपाठ, ग्रंथों का अध्ययन भी नही करते, अपने शिष्यों ...Read More
स्पंदन - 7
२३: चाय का प्याला मेइजी युग के नान-इन झेनगुरू के पास विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर झेनयोगा के में ...Read More
स्पंदन - 8
२३: चाय का प्याला मेइजी युग के नान-इन झेनगुरू के पास विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर झेनयोगा के में ज्ञान प्राप्त करने आ गए। नान-इन मास्टरजी ने उनके लिए चाय बनायी ओैर प्रोफेसर के कप में चाय डालने लगे। चाय का कप पुरा भर गया, चाय बाहर छलकने लगी। प्रोफेसर साहब को यह ...Read More