खेल खौफ का

(12)
  • 81.9k
  • 4
  • 40.2k

6...7...8...9...10... रेडी???? मेरे 8 साल के भाई ने अपनी तुतलाती सी आवाज में पूछा. "नहीं आशु ...मैंने कहा था न कम से कम 20 तक काउंट करो." आशीष - ओके दी...11..12...13.... आशीष की काउंटिंग जारी थी और मैं छुपने के लिए कोई परफेक्ट जगह खोज रही थी. मगर समझ ही नहीं आ रहा था छुपने के लिए कौन सी जगह परफेक्ट होगी. यही प्रॉब्लम होती है हमारे जैसे मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों के साथ. 2 कमरे के छोटे से मकान में इतनी जगह तो बिल्कुल नहीं होती कि आप कोई भी फिजिकल एक्टिविटी वाले गेम खेल सकें. ज्यादा से ज्यादा आप लूडो, कैरम, चेस या स्क्रैबल खेल सकते हैं. स्क्रैबल में भी मेरी और मेरे भाई की कम और हमारे पैरेंट्स की खुशी ज्यादा रहती है. माइंड एक्सरसाइजिंग गेम्स यू नो.... मैं आलमारी के पीछे छुपने की सोच ही रही थी कि लिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे कान में फुसफुसाई, कहाँ छुपने जा रही है? मैंने आलमारी की तरफ इशारा कर दिया. उसने न में गर्दन हिलाई और धीमे से बोली, वो जगह तो आशीष देख चुका है, झट से खोज लेगा हमे. "तो फिर क्या करें?" लिया (मुस्कुराते हुए) - चलो आज एक नई जगह छुपते हैं.

New Episodes : : Every Tuesday, Thursday & Saturday

1

खेल खौफ का - 1

6...7...8...9...10... रेडी???? मेरे 8 साल के भाई ने अपनी तुतलाती सी आवाज में पूछा. "नहीं आशु ...मैंने कहा था कम से कम 20 तक काउंट करो." आशीष - ओके दी...11..12...13.... आशीष की काउंटिंग जारी थी और मैं छुपने के लिए कोई परफेक्ट जगह खोज रही थी. मगर समझ ही नहीं आ रहा था छुपने के लिए कौन सी जगह परफेक्ट होगी. यही प्रॉब्लम होती है हमारे जैसे मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों के साथ. 2 कमरे के छोटे से मकान में इतनी जगह तो बिल्कुल नहीं होती कि आप कोई भी फिजिकल एक्टिविटी वाले गेम खेल सकें. ज्यादा से ...Read More

2

खेल खौफ का - 2

कमरे में आती कुछ तेज आवाजों से मेरी नींद खुली. मैंने एक नजर टीवी पर डाली. मगर टीवी ऑफ अब मेरी नजर घड़ी पर पड़ी. रात के 2 बज रहे थे. "इतनी रात को कौन चिल्ला रहा है?" मैंने अपने कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश की मगर ये देखकर मुझे हैरानी हुई कि वो बाहर से लॉक्ड था. आखिर हो क्या रहा है यहां . मैंने बिस्तर पर नजर डाली, आशीष इन सबसे बेखबर सोया हुआ था. तभी मेरी नजर खिड़की से आती नीली लाल रोशनी पर पड़ी. मैं धीरे से खिड़की के पास गई और शीशे से ...Read More

3

खेल खौफ का - 3

ये मेरे पैरेंट्स के स्कूल फ्रेंड्स थे. जो कभी हमारे पड़ोसी हुआ करते थे. इनफैक्ट उनकी एक बेटी भी जो अक्सर मेरे साथ खेलने हमारे घर आया करती थी. तब मैं शायद 5..6 साल की थी. काफी याद करने पर भी मुझे उसका नाम याद नहीं आया. मगर एक दिन अचानक वो न जाने कहाँ गायब हो गयी. फिर उसे किसी ने नहीं देखा. उसके कुछ ही वक्त बाद वो शहर छोड़ कर चले गए थे. मुझे भी नहीं मालूम था वो यहां कुपवाड़ा में आ बसे हैं. अच्छी बात ये थी कि जब सारे नाते रिश्तेदारों ने हमसे ...Read More

4

खेल खौफ का - 4

मैं घबरा कर उठ कर बैठ गयी. बाहर शायद टेम्परेचर बेहद कम था मगर मैं पूरी तरह पसीने से चुकी थी. तो क्या ये सपना था? इतना अजीब? कौन थी वो लड़की? मैंने दीवार पर टंगी घड़ी पर एक नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. आशीष सुकून से सो रहा था. मैं भी वापस लेट गयी और फिर से सोने की कोशिश करने लगी. ----------- "आप मां की बहन हैं?" मैंने सुनयना मासी से पूछा. जो इस वक्त मेरे साथ बैठी चाय पी रही थी. सुनयना - बोनेर से यो बेसी... माय बेस्ट फ्रेंड. कहते हुए उनकी ...Read More

5

खेल खौफ का - 5

रात को डिनर के लिए हम सब साथ में इकट्ठा हुए. "सुनयना मासी ... आप सच में बहुत ही खाना पकाती हैं." मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा. अंकल कोवालकी (खाना खाते हुए) - अवनी .... आशीष ... तुम दोनों कुछ अपने बारे में बताओ ताकि हम लोग तुम्हारी पसंद नापसंद को जान सकें. इससे पहले कि मैं कुछ बोलती एक चमगादड़ उड़ता हुआ वहां आ घुसा. और बेहद फुर्ती से यहां वहां उड़ने लगा. मैंने घबरा कर आशीष को कस कर पकड़ लिया. मगर मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रह जब मैंने देखा अंकल कोवालकी ने बड़ी ही ...Read More

6

खेल खौफ का - 6

सुनयना (मेरा सिर सहलाते हुए) - अवनी...अवनी बेटा... एखोन केमोन लागछे? मैं हड़बड़ा कर उठकर बैठ गयी. मैं अपने में बिस्तर पर पड़ी थी. अंकल कोवालकी और सुनयना मासी और वहीं मेरे पास बैठे हुए थे. अंकल कोवालकी - तुम सीढ़ियों के पास क्या कर रही थी? हमने तुम्हारे चीखने की आवाज सुनी तो आकर तुम्हें वहां बेहोश पड़े देखा. एनी प्रॉब्लम? मैंने हिचकिचाते हुए उनको पूरी घटना बताई. सुनयना मासी में मुझे अपने गले से लगा लिया. "मुझे आशु को देखना है...वो ठीक तो है?" अंकल कोवालकी (सपाट लहजे में) - वो बिल्कुल ठीक है और आराम से ...Read More

7

खेल खौफ का - 7

आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गयी. इस घर में आने के बाद शायद ही किसी रात को शांति से सो पायी थी. खिड़की से चांदनी की रोशनी आ रही थी. मैंने खिड़की खोल दी और उनके सामने एक आराम कुर्सी लगा कर बैठ गयी और बाहर का नजारा देखने लगी. गार्डन चांदनी रोशनी में बेहद खूवसूरत लग रहा था. ठंढी हवा के साथ फूलों की भीनी भीनी खुशबू से मुझे अच्छा फील हो रहा था. मगर तभी अचानक मैंने देखा कि एक आदमी गार्डन में घुस आया. वो अकेला नहीं था. उसके साथ एक औरत भी थी ...Read More

8

खेल खौफ का - 8

आफरीन की बातें सुनकर मुझे अब ये घर और यहां के लोग दोनों ही अजनबी और अजीब दोनो लगने थे. काश कि उन पुलिस ऑफिसर्स ने अब तक मेरी नानी मां का पता लगा लिया हो और मुझे और आशु को यहां से वापस हमारे शहर ले चलें. मुझे अब यहां और नहीं रुकना. मगर दिल के किसी कोने में मैं पहले से जानती थी कि ये पॉसिबल नहीं है. जब मुझे और कुछ नही सूझा तो मैंने चोरी छुपे उस मकान में जाने का निश्चय किया. वैसे भी अंकल कोवालकी आजकल अपने आर्ट वर्क में बिजी थे. उनको ...Read More

9

खेल खौफ का - 9

मां बाप और टीचर्स बच्चों को गलती करने पर अलग अलग तरह की सजा देते हैं. जैसे कभी बाथरूम बंद करना, खेलने जाना बंद करवा देना, खाने में लगातार दलिया खिलाते रहना, एक्स्ट्रा होमवर्क करवाना वग़ैरह वगैरह. मुझे अभी भी याद है एक बार लिया के साथ खेलते हुए मुझसे कुछ सामान टूट गया था और उसके लिए सजा के रूप में मां ने मुझे लगातार एक हफ्ते तक सुबह के ब्रेकफास्ट में दलिया खिलाया था. मां पनिशमेंट भी हेल्दी देती थीं. मगर आज शाम 6 बजे के बाद घर आने की वजह से मुझे कुछ अलग ही सजा ...Read More

10

खेल खौफ का - 10

अगले दिन जब मासी मां और अंकल दोनों बिजी थे मैं चुपके से रचना के पास चली गयी. मैंने को भी साथ लेने की कोशिश की मगर वो बेहद अजीब बर्ताव कर रहा था. न तो उसने मुझसे कोई बात की और न ही मेरी किसी बात का जवाब दिया. बस चुपचाप खड़े होकर मुझे एकटक देखता रहा. जैसे ही अंकल कोवालकी हमारे रूम में आये वो चुपचाप सर झुकाकर वहां से चला गया. जब मैं उस पुराने मकान में पहुंची. रचना अब भी उसी कुर्सी पर बैठी थी. "तुम ठीक हो?" मुझे देख कर मुस्कुराई. "बाकी सब कहाँ ...Read More

11

खेल खौफ का - 11

हम सब को छुपना था और रोहन हमें खोजने वाला था. जैसे ही रोहन ने काउंटिंग शुरू की सब के लिए दौड़े. मैं भी वापस उसी रूम में आ गयी जहां मुझे वो सोल्जर की आत्मा दिखी थी. और पता है मैंने क्या किया? मैंने वो ब्लैंकेट उठाया और उसे बिल्कुल ऐसे कुर्सी पर एक कुशन के सहारे रख दिया मानों वहां कोई बैठा हो. फिर मैं झट से जाकर कमरे के दरवाजे के पीछे छुप गयी. मैंने सोचा जैसे ही रोहन कमरे में आकर उस ब्लैंकेट को हटाने की कोशिश करेगा, मैं फौरन यहां से निकल कर बाहर ...Read More

12

खेल खौफ का - 12

मैं वहां से सीधे अपने रूम में पहुंची और लिया को वीडियो कॉल कर दिया. मैंने उसे आज अब यहां जो कुछ भी हुआ था एक एक चीज बताई. ये भी कोवालकी अंकल कितने अजीब हैं. गार्डन में मैंने कितने अजीब से क्रिएचर को देखा और ये भी कि आज मैंने एक भटकती आत्मा को देखा. लिया - डोंट वरी अवनी सब ठीक हो जाएगा. अभी भले ही तुम्हें ये सब बुरा लग रहा हो मगर कौन जानता है इन सबमें ही तुम्हारी भलाई छिपी हो...सो ज्यादा मत सोचो. मुझे आज भी ऐसा ही लग रहा था कि लिया ...Read More

13

खेल खौफ का - 13

जब मेरी आँख खुली तो मैंने खुद को अपने कमरे में बिस्तर पर पाया. मैंने इधर उधर नजरें घुमा देखा. मैं अपने घर में थी. अपने पुराने घर में. मगर मैं यहां कैसे आयी. अभी मैं सोच ही रही थी कि मेरे रूम का दरवाजा खुला और मां के साथ पापा अंदर आ गए. मां (टीवी ऑफ करते हुए) - फिर टीवी ऑन छोड़ दिया. केखोन शिखबे एई मेइटि... देखा लाइट भी ऑन है. "मां ...पापा...आप दोनों कहां चले गए थे." मैंने उनको आवाज लगाई मगर वो तो जैसे मुझे सुन ही नहीं रहे थे. मां पापा के पास ...Read More

14

खेल खौफ का - 14

हम दोनों तेजी से भागते हुए घर से बाहर आ गए. और थोड़ी दूर जाकर बुरी तरह हांफने लगे. आत्माएं नुकसान नहीं पहुंचाती....हुंह?" मैंने रोहन को घूरकर देखा. रोहन (झुककर हांफते हुए मेरी तरफ देखकर) - उन्हें बस यही पता है कि तुम मिस्टर कोवालकी के साथ रहती हो. इसलिए वो तुमसे नाराज़ हैं. और शायद घबराते भी हैं. मैंने एक बार और घर की तरफ नजर डाली. "तो अब वो हमारे पीछे नहीं आएंगे?" रोहन (घर की तरफ देखकर) - शायद उनकी लिमिट घर के अंदर तक ही है. सो आई गेस...नो. फिर उसने मेरी तरफ देखकर पूछा, ...Read More

15

खेल खौफ का - 15

काउंटडाउन शुरू हो चुका था. किसी भी तरह मुझे वो बॉक्स खोजना ही था. अपने भाई की जिंदगी के मैं दौड़ती हुई सीधे चौथे फ्लोर पर जा पहुंची. वहां कोई भी रूम लॉक्ड नहीं था. सो मैं आराम से कमरे के अंदर जा घुसी. अंदर सैकड़ों की संख्या में पेंटिंग्स, मूर्तियां, एक से बढ़कर एक बेहतरीन टेराकोटा पड़े हुए थे. सभी पेंटिंग्स एक से बढ़कर एक खूबसूरत लग रही थी मानो अभी बोल पड़ेंगी. हर तस्वीर और मूर्ति की आंखें मानो मुझे घूर रही थी. मुझे बहुत अनकम्फर्टेबल फील होने लगा था. मुझे उनकी नजरें चुभती हुई सी महसूस ...Read More