महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन्

(64)
  • 95.1k
  • 15
  • 46.5k

किसी भी विषय में विशिष्ट ख्याति पाने के साथ असाधारण प्रतिभा से विभूषित व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं। समय के साथ ओझल होना भी नियम ही है, परंतु विश्व - गणित मंडल में उज्ज्वल प्रतिभा के धनी श्रीनिवास रामानुजन इस नियम के अपवाद हैं। केवल तैंतीस वर्ष की अल्प आयु पानेवाले एवं पराधीन भारत में दरिद्रता के स्तर पर विवशताओं के मध्य पले-बढ़े रामानुजन ने गणित पर अपने शोधों से तथा उनके पीछे छिपी अपनी विलक्षणता की जो छाप छोड़ी है, उसे जानने के बाद किसी को भी आश्चर्य होना स्वाभाविक है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन जैसे व्यक्ति संसार में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। उनके जीवन में झाँकना तथा कार्य से अवगत होना एक दिव्य विभूति के निकट जाने जैसा है। यदि आज श्रीकृष्ण अर्जुन के सामने ‘गीता’ के दसवें अध्याय के ‘विभूतियोग’ का वर्णन करते तो यह अवश्य कहते, ‘गणितज्ञानां अहं रामानुजन अस्मि— अर्थात् गणितज्ञों में मैं रामानुजन हूँ।’ उनके विद्यार्थी जीवन की एक घटना है। उनकी कक्षा में गणित के अध्यापक ने कहा कि यदि 3 केलों को 3 बच्चों में बराबर-बराबर बाँटा जाए तो प्रत्येक बच्चे को 1-1 केला मिलेगा। फिर अध्यापक ने इसका व्यापीकरण किया। इसपर रामानुजन का प्रश्न था, ‘तो यदि केलों को शून्य बच्चों में बराबर-बराबर बाँटा जाए, तब भी क्या प्रत्येक बच्चे को एक-एक केला मिलेगा?’ इससे स्पष्ट होता है कि शैशवकाल से ही रामानुजन की बुद्धि शून्य के विशेष स्थान की ओर संकेत कर रही थी। संख्याओं से रामानुजन का मानो अटूट तादात्म्य संबंध बन गया था। अंक 7 की वह बड़ी रहस्यमयी बातें करते थे। उन्हें भारतीय मिथ में आए सप्तर्षि आदि में 7 की संख्या का सृष्टि में विशेष स्थान लगता था। चार अंकों— 1,2, 7 और 9 को वह किन्हीं कारणों से बहुत महत्त्वपूर्ण मानते थे।

Full Novel

1

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 1

किसी भी विषय में विशिष्ट ख्याति पाने के साथ असाधारण प्रतिभा से विभूषित व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं। के साथ ओझल होना भी नियम ही है, परंतु विश्व - गणित मंडल में उज्ज्वल प्रतिभा के धनी श्रीनिवास रामानुजन इस नियम के अपवाद हैं। केवल तैंतीस वर्ष की अल्प आयु पानेवाले एवं पराधीन भारत में दरिद्रता के स्तर पर विवशताओं के मध्य पले-बढ़े रामानुजन ने गणित पर अपने शोधों से तथा उनके पीछे छिपी अपनी विलक्षणता की जो छाप छोड़ी है, उसे जानने के बाद किसी को भी आश्चर्य होना स्वाभाविक है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन ...Read More

2

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 2

(अटल बिहारी वाजपेई जी)—जिस भारतीय संस्कृति ने विश्व को शून्य का उपहार दिया, उसी कोख से श्रीनिवास रामानुजन् जैसे गणितज्ञ ने जन्म लिया। 32 वर्ष की कम आयु में ही रामानुजन ने गणित के संसार को ऐसा अद्भुत योगदान दिया जिसे परिभाषित करने के लिए आज भी सैकड़ों विद्वान प्रयासरत हैं।एक मुनीम के घर में जन्म लेकर विश्व को प्रभावित करने तक की यात्रा में रामानुजन् ने हर भारतीय को गौरवान्वित किया है। उनकी हस्तलिपिबद्ध पुस्तिका सन् 1976 में अचानक ‘ट्रिनिटी कॉलेज’ के पुस्तकालय में मिली। वह करीब एक सौ पृष्ठ की पुस्तिका आज भी गणितज्ञों के लिए एक ...Read More

3

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 3

अंक-शास्त्र एवं अध्यात्म का संबंधरामानुजन के जीवन तथा कार्य में अध्यात्म का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वह कहा थे, ‘मेरे लिए वह समीकरण, जिसमें ईश्वर का विचार समाहित नहीं है, व्यर्थ है।’उनके लिए अंकों को समझना अध्यात्म से जुड़ने तथा उसके रहस्य को खोलने की प्रक्रिया थी । उनका शोध कार्य करने का तरीका बड़ा विचित्र था। बहुधा वह सूत्र लिख भर देते थे। वे सूत्र उन्हें कैसे सूझे तथा उनको कैसे सिद्ध किया, यह वह छोड़ देते थे। अतः अपनी खोज से उन्होंने कितने ही ऐसे असाधारण निष्कर्ष निकाले, जिन्है प्रारंभ में गणित-शोधकर्ताओं ने आश्चर्य एवं संदेह ...Read More

4

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 4

रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को सायंकाल इरोड नामक ग्राम, जिला कोयंबटूर में अपने नाना के घर पर था। उनकी माता का नाम कोमलताम्मल तथा पिता का नाम के. श्रीनिवास आयंगर था। जन्म के समय उनके पिता की उम्र चौबीस वर्ष एवं माता की उम्र बीस वर्ष के लगभग थी। दोनों ही सम्माननीय ब्राह्मण परिवारों के थे।पिता कुंभकोणम नगर में कपड़े के एक व्यापारी की दुकान पर, अपने पिता कुप्पुस्वामी की भाँति, मुनीम थे। पिता का वेतन बहुत कम रहा होगा।कुंभकोणम में कावेरी एवं अरसलार नदियों का संगम है। कावेरी नदी के तट से कुछ दूरी पर शारंगपाणि ...Read More

5

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 5

तीन वर्ष की अवस्था तक रामानुजन ने बोलना आरंभ नहीं किया तो माता-पिता को उनके गूँगा होने की आशंका बड़ों की सलाह पर उनका विधिवत् अक्षर अभ्यास संस्कार कराया गया। घर में ही तमिल भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् अक्तूबर 1892 में विजयादशमी के दिन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पाँच वर्षीय रामानुजन को स्थानीय पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया। परंतु स्कूल में उनका मन नहीं लगता था।पारिवारिक कारणों से वह तीन वर्षों तक थोड़े-थोड़े समय तक कुंभकोणम, कांचीपुरम तथा मद्रास (चेन्नई) के स्कूलों में गए। कांचीपुरम में उनकी शिक्षा का माध्यम तेलुगु भाषा रही। सन् 1895 के ...Read More

6

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 6

रामानुजन के शोध कार्य का आरंभ उनके स्कूल के विद्यार्थी-काल से ही मानना चाहिए। रामानुजन तब तेरह वर्ष के होंगे, स्कूल में पढ़ते समय ही उन्होंने अध्यापकों से विचित्र प्रश्न पूछने एवं गणितीय अभ्यासों के सरल हल निकालने आरंभ कर दिए। जैसा हम पहले बता चुके हैं, उनके घर में दो युवा विद्यार्थी रहते थे। उन विद्यार्थियों से उन्होंने पुस्तकालय से कुछ अन्य पुस्तकें लाने का आग्रह किया। जो पुस्तकें उन्होंने लाकर दीं, उनमें एस. एल. लोनी की ‘ट्रिगोनोमेट्री’ भी थी। (यह पुस्तक भारतीय स्कूलों में बीसवीं शताब्दी के छठे दशक के बाद तक प्रयोग होती रही है।) इस ...Read More

7

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 7

रामानुजन की स्वाभाविक पूजा आदि में अभिरुचि का उल्लेख पहले हुआ है। नामगिरी देवी के प्रति उनके परिवार का उनका विशेष अनुराग था ही। वह अंत तक नागगिरी देवी को ही अपने शोध कार्य एवं सूत्रों की प्रदायिनी बताते रहे। इसलिए उनके जीवन में यह विधा विशेष स्थान रखती है। उन्होंने परिवार के परिवेश में रामायण एवं महाभारत के कथानक बड़े मनोयोग से पढ़े-सुने थे। कदाचित् उपनिषदों में उठाए गहन प्रश्न एवं उनके समाधानों को उन्होंने गहराई से आत्मसात् किया था।अंग्रेजी में श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी लिखने वाले श्री कैनिगेल का कहना है कि रामानुजन का आध्यात्मिक पक्ष बड़ा ...Read More

8

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 8

रामानुजन स्वभाव से शरमीले थे। अपने सीधे-सरल व्यक्तित्व से वह सदा ही अन्य व्यक्तियों को प्रभावित कर लेते थे। व्यक्तियों से उनका व्यवहार सदैव मित्रवत् रहता था। हाई स्कूल के उनके सहपाठी एन. रघुनाथन के अनुसार, उनसे शत्रु-भाव रख पाना किसी के लिए संभव ही नहीं था। कुछ मोटाई लिये एवं मध्यम ऊँचाई के रामानुजन की आँखों में एक चमक सदा बनी रहती थी। उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा विशेष था कि किसी व्यक्ति को उनपर अविश्वास होता ही नहीं था। उनसे मिलने पर प्रत्येक व्यक्ति उन्हें अनायास ही पसंद करने लगता था और उनके द्वारा कुछ न माँगने ...Read More

9

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 9

जीवन में एक नया मोड़श्री शेषु अय्यर रामानुजन को कुंभकोणम के राजकीय कॉलेज के विद्यार्थी के रूप में पहले जानते थे। अब चार वर्ष के अंतराल के पश्चात् जब वह रामानुजन से मिले और उन्होंने उनकी गणित की वह नोट बुक देखी तो बहुत प्रसन्न और प्रभावित हुए। उन्होंने नेल्लौर के जिलाधीश दिवान बहादुर आर. रामचंद्र राव के लिए एक संस्तुति-पत्र लिखकर रामानुजन को दिया। रामचंद्र राव गणित में विशेष रुचि रखते थे और तब ‘इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी’ के सचिव थे। ऐसा प्रतीत होता है कि संकोची स्वभाव के रामानुजन का साहस जिलाधीश रामचंद्र राव से मिलने का नहीं ...Read More

10

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 10

[मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में गणित करने का प्रोत्साहन]रामानुजन के समय में भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अंग था। प्रमुख और स्थानों पर अंग्रेज पदाधिकारी थे, जो भारतीयों से सामाजिक एवं वैचारिक स्तर पर बिलकुल अलग-थलग थे। उनसे भारतीयों के संपर्क बहुत सीमित थे तथा उनसे मिलने और अपनी समस्याओं को रखने में साधारणतः भारतीय बहुत सकुचाते थे। परंतु रामानुजन के बारे में प्रेसीडेंसी कॉलेज के कुछ अंग्रेज प्राध्यापक तथा सर फ्रांसिस स्प्रिंग आदि जानने लगे थे। इधर रामचंद्र राव, नारायण अय्यर आदि कुछ अन्य प्रभावशाली भारतीय भी उनमें रुचि ले रहे थे।नारायण अय्यर, रामचंद्र राव तथा अन्य शुभचिंतक प्रयत्नशील थे ...Read More

11

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 11

[ प्रो. हार्डी की संक्षिप्त जीवनी ]रामानुजन के जीवन में प्रो. हार्डी का वह स्थान रहा है, जो एक के लिए उसको तराशने वाले का होता है। रामानुजन एक अद्भुत गणितज्ञ-हीरा थे। वह चमके, परंतु उन्हें चमकाने में प्रो. हार्डी की प्रमुख भूमिका रही।प्रो. हार्डी का पूरा नाम गोडफ्रे हैरॉल्ड हार्डी था। उनका जन्म 7 फरवरी 1877 को क्रैनले (सरे) में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आइजक हार्डी और माता का नाम सोफिया हार्डी था। पिता आइजक हार्डी क्रैनले स्कूल में भूगोल के अध्यापक थे और माता लिंकन ट्रेनिंग कॉलेज में वरिष्ठ अध्यापिका रहीं। ...Read More

12

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 12

[ प्रो. हार्डी से संपर्क के सूत्र ]16 जनवरी, 1913 को रामानुजन ने जो पत्र प्रो. हार्डी को लिखा उसका हिंदी रूपांतर इस प्रकार है—प्रिय महोदय, मैं अपना परिचय मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के एकाउंट्स विभाग के लिपिक के रूप में, जिसका वेतन 20 पाउंड प्रतिवर्ष है, देना चाहता हूँ। मेरी आयु लगभग तेईस वर्ष है। मेरी शिक्षा विश्वविद्यालय तक नहीं हुई है; मैंने स्कूल की साधारण शिक्षा ही ली है। स्कूल छोड़ने के पश्चात् मैं अपना खाली समय गणित करने में लगाता रहा हूँ। इसमें मैंने विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का अनुसरण नहीं किया है, बल्कि अपना ही एक नया ...Read More

13

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 13

[ इंग्लैंड जाने का निर्णय अभी नहीं ]रामानुजन ने कैंब्रिज जाना स्वीकार नहीं किया। वह एक संस्कारित और कर्मकांडी थे। हिंदू समाज और विशेष रूप से ब्राह्मण समाज में समुद्र पार की यात्रा को तब वर्जित माना जाता था। प्रो. हार्डी के बुलाने पर भी वहाँ जाना स्वीकार न करने का एक कारण यही रहा होगा, जो प्रत्यक्ष में अपने निकट के व्यक्तियों के सामने रखा भी गया होगा। उनके माता-पिता, विशेष रूप से माता, अवश्य उन्हें विदेश भेजने के पक्ष में नहीं रही होंगी; परंतु इसके अन्य कई कारण भी स्पष्ट दिखाई देते हैं।पहला महत्त्वपूर्ण कारण स्वयं ‘इंडिया ...Read More

14

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 14

[ मद्रास विश्वविद्यालय में शोध-वृत्ति ]फरवरी 1913 में शिमला में 'डायरेक्टर जनरल ऑफ लेबोरेटरीज' के डॉ. गिल्बर्ट टी. वाकर आए। वह भी एक सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। वे वरिष्ठ रैंगलर, ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो तथा वहाँ गणित के लेक्चरर रहे थे। भारत में कई वर्षों से मौसम के बारे में ठीक जानकारी की कमी के कारण कई कार्य गड़बड़ाए थे और मानसून की सही जानकारी का महत्त्व बढ़ गया था। तब सरकार ने उन्हें ‘इंडियन मेट्रोलॉजिकल’ विभाग का अधिकारी बनाकर भारत बुलाया था।सर फ्रांसिस ने उनसे रामानुजन का उल्लेख किया और रामानुजन की नोट बुक्स देखने का आग्रह किया। 25 ...Read More

15

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 15

[ हार्डी से आगे के पत्र व्यवहार और नेविल ]इस बीच रामानुजन और प्रो. हार्डी एक-दूसरे से पत्र-व्यवहार करते प्रो. हार्डी साध्यों की पूरी-पूरी उपपत्तियाँ माँगते रहे, मगर रामानुजन ने उन्हें वह नहीं भेजी। उस पत्र व्यवहार से तंग आकर प्रो. लिटिलवुड ने प्रो. हार्डी को लिखा—‘‘उसका पत्र इन हालात में पागल बनाने वाला है। मुझे तो यह शंका है कि उसे यह भय है कि कहीं तुम उसके कार्य को चुरा न लो।”इस पर प्रो. हार्डी ने रामानुजन को लिखा— “मैं सब बातें स्पष्ट रूप से तुम्हारे सम्मुख रखना चाहता हूँ। तुम्हारे तीन लंबे साध्य जो मेरे पास ...Read More

16

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 16

[ इंग्लैंड जाने की पृष्ठभूमि वह स्वप्न जिसने यह साकार कर दिया ]आखिर क्यों रामानुजन का मन इंग्लैंड जाने बना?जैसा कि पहले लिख आए हैं, रामानुजन की माता बहुत धार्मिक एवं रूढ़िवादी विचारों की महिला थीं और रामानुजन उनकी प्रत्येक बात का बहुत आदर करते थे। स्वयं रामानुजन भी जन्मजात रहस्यवादी रहे और देवी नामगिरी को अपनी अधिष्ठात्री तथा गणित के निष्कर्षों की साक्षात् प्रेरणा मानते थे।रामानुजन के विदेश जाने में उनका तथा उनकी माता के हृदय परिवर्तन का बड़ा महत्त्व है। इस हृदय परिवर्तन के सामाजिक एवं रहस्यवादी कारण बताए जाते हैं। सामाजिक तौर पर निकट के पारिवारिक ...Read More

17

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 17

[ धन की समस्या ]रामानुजन इंग्लैंड जाने के लिए तैयार हुए तो सबसे पहले उनके लिए वहाँ पर किए वाले धन के प्रबंध की समस्या खड़ी हुई। नेविल ने इस बारे में प्रो. हार्डी को लिख दिया था। हार्डी ने ‘इंडिया ऑफिस’ का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि पहले वह उन्हें इस बारे में बताकर उनसे रामानुजन का संपर्क करा चुके थे; परंतु लंदन स्थित ‘इंडिया ऑफिस’ के श्री मैलेट, जिन्होंने पहले भारत में अपने सहकर्मी डेविस को लिखा था, ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इस प्रकार के कार्य के लिए धन देने की कोई व्यवस्था उनके ...Read More

18

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 18

[ इंग्लैंड के लिए प्रस्थान ]26 फरवरी, 1914 को समुद्री जहाज से रामानुजन के इंग्लैंड जाने का टिकट आ उन्हें 17 मार्च को इंग्लैंड के लिए प्रस्थान करना था। परंतु किसी ने भी रामानुजन को यात्रा के लिए बहुत उल्लसित नहीं पाया। रामचंद्र राव ने लिखा है कि वह इस प्रकार कार्य कर रहे थे, मानो एक बुलावे पर जा रहे हैं। उनके जाने में कितने ही व्यक्तियों का हाथ था, सभी को उनके लिए कुछ-न-कुछ करने की उत्कंठा थी।उनकी पत्नी ने उनके साथ चलने का प्रस्ताव रखा था। रामानुजन ने उन्हें समझाया कि यदि वहाँ उन्हें पत्नी का ...Read More

19

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 19

[ इंग्लैंड में पदार्पण, कैंब्रिज में कार्य आरंभ ]बंदरगाह की गोदी पर रामानुजन को लेने नेविल अपने बड़े भाई साथ कार से आए थे। उन्हें वह पहले लंदन के साउथ-केनसिंग्टन भाग में 21 क्रोमवैल रोड, जहाँ भारत से पहुँचने‌ वाले विद्यार्थियों का स्वागत केंद्र था, गए। वहाँ पर ‘नेशनल इंडिया एसोसिएशन’ का कार्यालय था। लंदन होकर इंग्लैंड पहुँचने वाले विद्यार्थियों के लिए ज्योर्जियन शैली के इस भवन में कई कमरे थे। रामानुजन को वहाँ लाने का ध्येय उन्हें भारतीय वातावरण में ले जाकर उनके आगमन को सहज बनाना था। परंतु पूर्व परिचित नेविल के साथ रहने से रामानुजन को ...Read More

20

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 20

[ महालनोबीस से भेंट और ‘लॉउवेन स्ट्रीट प्रॉब्लम’ पहेली ]हम भारतवासियों के लिए प्रो. प्रशांत चंद्र महालनोबीस का नाम है। उन्होंने कलकत्ता में इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें ही सर्वप्रथम योजना आयोग का कार्य सौंपा था। रामानुजन के समय में प्रो. प्रशांत चंद्र महालनोबीस इंग्लैंड में किंग्स कॉलेज में विद्यार्थी थे। बाद में वह रॉयल सोसाइटी के फेलो भी मनोनीत हुए थे।एक रविवार को प्रातः वे रामानुजन के व्हेवैल कोर्ट के कमरे में बैठे थे। रामानुजन पिछले कमरे में सब्जी पका रहे थे। उन्होंने रामानुजन के सामने पत्रिका ‘स्ट्रंड’ में छपी गणित ...Read More

21

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 21

[ रामानुजन के विविध कार्यक्षेत्र ]रामानुजन को गणित में 'संख्या-शास्त्र (नंबर थ्योरी) का द्रष्टा ऋषि' कहना ठीक होगा। आधुनिक मेंप्रचलित नामावली के अनुसार कहें तो उनके कार्य को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त माना जाता है—निश्चयात्मक अवकलन-सूत्र (Definite integrals)मॉडुलर समीकरण (Modular equations)रीमान्स-जीटा फलन (Riemann's zeta function)अनंत श्रेणियाँ (Infinite series)अनंत श्रेणियों का योग (Summation of series)एनालिटिक संख्या-शास्त्र (Analytic number-theory)अस्मटोटिक सूत्र (Asymptotic formula)विभक्तियाँ (Partitions)संयोजन-शास्त्र (Combinatorics )जैसाकि पहले लिख आए हैं, कैंब्रिज जाने से पूर्व रामानुजन के पास प्रकाशन-योग्य बहुत सामग्री थी। वह और उनके मित्र उस सामग्री को प्रकाशित करने के लिए उत्सुक थे। प्रो. हार्डी का पहला पत्र मिलने के बाद ...Read More

22

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 22

[ प्रथम विश्वयुद्ध और रामानुजन के शोध में प्रगति ]रामानुजन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को ठीक से समझने के यह जानना आवश्यक है कि उन्होंने कैंब्रिज पहुँचकर किस वातावरण में कार्य किया। यह सही है कि रामानुजन जब कैंब्रिज पहुँचे तब उन्हें वहाँ शोध के लिए बहुत ही आदर्श वातावरण प्राप्त हुआ। वहाँ बहुत से उच्च कोटि के गणितज्ञ थे। परंतु यह वातावरण शीघ्र ही बदल गया। कैंब्रिज के गणितज्ञ बिखरे। रामानुजन के छोटे जीवन काल में बहुत कुछ आकस्मिक हुआ है। इस पर उनका कोई वश नहीं था। परंतु वह गणित से विमुख नहीं हुए। विषम परिस्थितियों में ...Read More

23

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 23

[ पश्चिमी वातावरण में रामानुजन का जीवन ]साधारणतः आज भी एक ऐसे देश में, जहाँ की संस्कृति व सभ्यता देश से बिलकुल भिन्न हो, एक व्यक्ति को अपने परिवार से दूर जाकर रहने पर बड़ी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। तब की तो बात ही और थी। रामानुजन को भी यह सब झेलना पड़ा और इन व्यक्तिगत परेशानियों का भी प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा।पिछले अध्यायों में हम रामानुजन को मिले कैंब्रिज के बौद्धिक वातावरण तथा विश्वयुद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों का उल्लेख कर आए हैं। यह बौद्धिक वातावरण वास्तव में कैसा था, रामानुजन के कृतित्व के कितना ...Read More

24

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 24

[ भारत में उनके पीछे घर का वातावरण ]प्रारंभ में रामानुजन दो वर्ष की छात्रवृत्ति पर कैंब्रिज आए थे। उनकी छात्रवृत्ति का समय बढ़ गया था, पर दो वर्ष इंग्लैंड में रहने के पश्चात् भारत अपने परिजनों व मित्रों से मिलने के लिए जाना चाहते थे। विश्वयुद्ध छिड़ने के कारण वह नहीं जा पाए। इसका एक दूसरा कारण उनकी माँ थीं, जो अपने प्रतिभावान् पुत्र को सफलता के शिखर पर देखना चाहती थीं। रामानुजन को बी. ए. की उपाधि मिलने के पश्चात् वह चाहती थीं कि वह वहाँ से एम. ए. भी कर लें। अतः उनकी माता ने उन्हें ...Read More

25

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 25

[ ट्रिनिटी की फेलोशिप नहीं, आत्महत्या का प्रयास और ‘रॉयल सोसाइटी के फेलो’ का सफल चुनाव ]रामानुजन बीमारी के मैटलॉक सेनेटोरियम में थे। रामानुजन के संरक्षक-अध्यापक श्री बार्नस ने पूरे विश्वास से मद्रास विश्वविद्यालय को लिखा था कि रामानुजन को अक्तूबर 1917 में ट्रिनिटी की फेलोशिप मिल जाएगी; परंतु तब तक ट्रिनिटी का वातावरण बहुत बदल चुका था। बड रसेल के निकाल दिए जाने से अध्यापक वर्ग में विभाजन हो गया था। प्रो. हार्डी इस विषय पर अपना रोष व्यक्त कर चुके थे, अतः अधिकारी वर्ग उनसे रुष्ट था।अक्तूबर 1917 में रामानुजन को पता लगा कि फेलोशिप के लिए ...Read More

26

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 26

[ सुधरती हालत ]रॉयल सोसाइटी का सम्मान प्राप्त होने के कुछ समय बाद रामानुजन के स्वास्थ्य में सुधार होने साथ ही पुनः गणित में उनके नए महत्त्वपूर्ण सूत्र व साध्य भी निकलने लगे। वह मैटलॉक से लंदन चले गए और फिट्जरॉय हाउस में रहने लगे। परंतु कभी-कभी ज्वर तेज हो जाता था। यहाँ उन्होंने कई विशेषज्ञों की सम्मति ली, परंतु ठीक निदान नहीं हो पाया था। उनके दर्द के ठीक कारण का पता लगाने में डॉक्टर एकमत नहीं थे। उसी समय उनके दाँत उखड़ने की बात भी आई तो एक डॉक्टर ने दर्द का कारण दाँत को ही ठहरा ...Read More

27

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 27

[ भारत लौटने की तैयारी एवं भारत आगमन ]चार वर्ष के ट्रिनिटी-प्रवास में रामानुजन के बीस महत्त्वपूर्ण शोध-लेख प्रकाशित चुके थे। वह एफ. आर. एस. की उपाधि से विभूषित हो चुके थे तथा उन्हें ट्रिनिटी से कार्य के लिए धनराशि (फेलोशिप) प्राप्त होने लगी थी। इस प्रकार उनकी उपलब्धियाँ तो असाधारण थीं।दूसरी ओर रामानुजन पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे। उनके स्वास्थ्य में कुछ सुधार अवश्य होने लगा था। उनके ज्वर का ऊपर-नीचे होना रुक सा गया था। वजन में भी 15 पाउंड की बढ़ोतरी हो गई थी। परंतु वास्तविकता इतनी अस्पष्ट थी कि यह कहना संभव नहीं था कि ...Read More

28

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 28

[ बिगड़ता स्वास्थ्य ]रामानुजन बीमारी की दशा में भारत आए थे। इंग्लैंड में डॉक्टरों ने उनके रोग को क्षय बताया था। भारत लौटने पर लगभग तेरह माह तक वे अपनी इस बीमारी से संघर्ष करते रहे। इस बीच उनकी पत्नी, माँ, पिता, दो भाई, नानी आदि उनके साथ रहे। बीमारी के कारण उन्होंने कई स्थान बदले-पहले नौ महीनों में छह स्थान। एडवर्ड इलियट रोड के बँगले में रामानुजन लगभग तीन माह तक वेंकट विलास (मद्रास) में रहे। तब मद्रास का तापमान अधिक हो जाने के कारण स्थान-परिवर्तन करके स्वास्थ्य लाभ के लिए वह कोडुमुदी चले गए। वहाँ दो माह ...Read More

29

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 29

[ संसार से विदाई ] रामानुजन की लगातार बीमारी के कारण घर के सभी सदस्य बहुत चिंतित थे। जैसा ऐसे समय पर बहुधा होता है, दुःखी मन ओषधि के साथ-साथ ज्योतिष से भी समाधान ढूँढ़ता है। मार्च 1920 में उनकी माँ श्री नारायण स्वामी अय्यर, जो गणितज्ञ शेषु अय्यर के पूर्व विद्यार्थी के अतिरिक्त एक प्रसिद्ध ज्योतिषी भी थे, से मिलीं।नारायण स्वामी अय्यर ने जन्म कुंडली माँगी तो माँ, जो स्वयं ज्योतिष में पारंगत थीं, ने स्मृति से ही पूरी ग्रह-स्थिति उन्हें बता दी। कुछ समय तक उसका अध्ययन करने के बाद नारायण स्वामी ने कुछ इस प्रकार बताया ...Read More

30

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 30

[ शोक संताप ]रामानुजन की मृत्यु का समाचार मद्रास एवं शेष भारत के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। उनके लक्ष्मीनरसिंहा, जो संपर्क आदि करने में आगे रहते थे, (बाद में उनका भी अल्प आयु में ही निधन हो गया) ने उनके जीवन की तिथिवार कुछ घटनाओं को लिपिबद्ध किया। भारत में तथा संपूर्ण विश्व के गणित-जगत् में उनकी मृत्यु का शोक छा गया। शोक सभाओं का आयोजन हुआ। कुछ समाचार पत्रों में उनकी जीवनी छपी, जिसमें इस बात का विशेष उल्लेख रहा कि किस प्रकार एक अत्यंत निर्धन परिवार में जनमे, स्कूल की शिक्षा से भी वंचित एक नवयुवक ...Read More

31

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 31

[ मृत्यु के पश्चात् रामानुजन के परिवार की स्थिति ]रामानुजन की मृत्यु से उनके परिवार पर मानो वज्रपात ही था। पिता पहले ही दृष्टिहीन हो चुके थे। कुछ समय पश्चात् वह बीमार पड़े और उसी वर्ष नवंबर में चल बसे। माता भी रामानुजन की मृत्यु के शोक को सहन नहीं कर पाई।बीस वर्षीया पत्नी जानकीअम्मल में तथा रामानुजन के परिवार के अन्य सदस्यों में सौहार्द की कमी थी।रामानुजन की मृत्यु से दो दिन पूर्व उनकी माता तथा भाई चेतपुर (मद्रास) पहुँच गए थे। सास-ससुर के पास जानकी का जीवन निर्वाह संभव नहीं था। अतः मृत्यु के ठीक बाद वह ...Read More

32

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 32

[ गणित पर रामानुजन का कार्य ] रामानुजन के कार्य का ब्योरा इस प्रकार से दिया जा सकता है—• जाने से पूर्व के कार्य।• इंग्लैंड में पाँच वर्ष रहकर किए गए कार्य।• भारत लौटकर एक वर्ष में किए गए कार्य।• सन् 1976 में अचानक प्रकाश में आए उनके कार्य और• कदाचित् अभी तक अप्राप्य उनके कार्य।इंग्लैंड जाने से पूर्व के कार्य:सन् 1903 से 1914 तक, केंब्रिज जाने से पूर्व तक, उनके द्वारा निकाले गए सूत्र तीन खंडों में हैं। ये उनकी तीन ‘नोट-बुक्स’ में संगृहीत हैं। पहली नोट बुक में 16 अध्याय हैं और इसमें 134 पृष्ठ हैं। दूसरी ...Read More