तुम ना जाने किस जहां में खो गए.....

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हर्ष ,हर्ष! कहां हो तुम? तुम्हें ढूंढती, तुम्हारे पीछे भागती वही मैं और अचानक सपना टूट जाता है। क्यों बार-बार देख रही हूं मैं यह सपना ? क्या संबंध है मेरा इस सपने से ? संबंध तो वास्तव में बहुत गहरा रहा है। करीब 25 साल पुराना। याद आता है वह दिन , करीब 16 साल की रही होंगी मैं। कुछ उम्र की खुमारी , कुछ मेरी कल्पनाशीलता और उस पर उस समय यह संदेश आना कि तुम्हें भी मैं बहुत अच्छी लगती हूँ मैं। कैसा नशा था, खुद-ब-खुद दिन जैसे रजनीगंधा की महक से महकने लगे थे। हर समय तुम्हारी

Full Novel

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 1

हर्ष ,हर्ष! कहां हो तुम? तुम्हें ढूंढती, तुम्हारे पीछे भागती वही मैं और अचानक सपना टूट जाता है। बार-बार देख रही हूं मैं यह सपना ? क्या संबंध है मेरा इस सपने से ? संबंध तो वास्तव में बहुत गहरा रहा है। करीब 25 साल पुराना। याद आता है वह दिन , करीब 16 साल की रही होंगी मैं। कुछ उम्र की खुमारी , कुछ मेरी कल्पनाशीलता और उस पर उस समय यह संदेश आना कि तुम्हें भी मैं बहुत अच्छी लगती हूँ मैं। कैसा नशा था, खुद-ब-खुद दिन जैसे रजनीगंधा की महक से महकने लगे थे। हर समय तुम्हारी ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 2 - गुलाबी मौसम

मई महीना बहुतों को गर्मी की चिपचिपाहट से भरा लगता है पर मेरे लिए तो हमेशा से यह रूमानियत रहा है । इसकी शुरुआत उस साल से होती है जिस साल मुझे तुम्हारा खत मिला था । सभी दृश्य मेरी आंखों के सामने स्पष्ट हैं। मई की वह दोपहर, आकाश मेघाच्छादित था और मेरे मन पर तो वसंत ऋतु छाया था। लखनवी गुलाबी कुर्ता पहनी मैं, तन मन से भी गुलाबी हो रही थी। पहला सलवार कुरता था वह मेरा । बड़ी दी की शादी में मम्मी ने दिलवाया था।आज तुम्हारा खत आने वाला था। सुबह से ही उस ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 3 - कॉलेज के दिन

पटना कॉलेज का विशाल प्रांगण अपनी विशालता से जितना प्रभावित करता है, नवागंतुकों को कहीं अंदर तक भयभीत भी है। मन में मंडराते बहुत सारे विचार, निडरता उस समय अपना आकार लेने लगते है जब सीनियर्स की टोली आप को घेर लेती है और उनकी टीका टिप्पणी आप के पोशाक तक जा पहुंचती है। "क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि यह स्कूल नहीं है , कॉलेज है और यहाँ ये पोशाक नहीं चलता है ।" उनका निशाना मेरी मिडी पर होता है। हम चांद पर पहुंचने का दावा करने वाले अपनी सोच को पोशाकों से ऊपर ले ही नहीं जा पाते ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 4 - गर्मी की छुट्टियां

परीक्षाओं के दिनअचानक से कॉलेज के माहौल में शांति छा गई। हर कोई व्यस्त था नोट्स, अनुमानित प्रश्न और की तैयारियों में। अपनी मित्रों में सिर्फ मैं साहित्य की छात्रा थी और सब विज्ञान संकाय से थे तो उनकी परीक्षा हो चुकी होती थी मार्च के अंत तक। परीक्षा के बाद एक और प्रतीक्षा रहती थी अपने मित्र दीपक की। दीपक - पटना कॉलेज के प्रथम वर्ष का मेरा मित्र।परिचय उससे तब हुआ था जब वह कोई सूचना देने आया था मुझे। बाद में पता चला उसने अपने एक मित्र से सिर्फ इसलिए दोस्ती तोड़ ली क्योंकि उसका मित्र आकर्षित ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 5 - वो पहली मुलाकात

हर्ष, हर्ष - मिलना चाहता है मुझसे। कायनात थम सी गई एक क्षण के लिए। अभी सुनी बात कानों को जैसे विश्वास नहीं हो पा रहा था। "क्या कहा तुमने?" मैंने अपनी ही आवाज सुनी। लगा, शायद गिर ही जाऊंगी मैं। इस क्षण की प्रतीक्षा सालों से की थी मैंने। प्रतीक्षा की तो जैसे आदत सी हो गई थी और अचानक उसका खत्म हो जाना। जैसे चिर निद्रा में विलीन किसी तपस्वी को कोई जोर से जगा दे। निद्रा में ही तो थी मैं - कई कई सालों से। और एक झटके से वो निद्रा तोड़ दी गई। हमेशा कल्पनाओं में इस ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 6 - हमारा मिलना

'कोजी स्वीट्स कॉर्नर ' हर्ष खड़ा था अपने किसी परिचित के साथ। मैं और संयोगिता भी पहुंचे। सामने आया अजनबियों वाली मुस्कुराहट के साथ और इधर प्रेम में आकंठ डूबी मैं। आमने - सामने हम दोनों थे पर हमारे इरादों में जमीन - आसमान की भिन्नता थी। मैं अपने ५साल पुराने प्रिय से मिलने आयी थी और वो अपनी बात साफ करने के लिए। मेरी वाचलता कहीं खो सी गई थी। " हमको अच्छा नहीं लगता कोई हम नाम तिरा,कोई तुझ सा हो फिर नाम भी तुझ सा रखें।"- अहमद फ़राज़पहले से और दिव्य दिखता हुए हर्ष। दिल्ली बहुत रास ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 7 - वह रात

घर में सबकी लाडली मैं। जब जो चाहा , मिला। ननिहाल के भरे - पूरे छह नाना - नानी परिवार के इस पीढ़ी की प्रथम संतान - सबका भरपूर प्यार मिला था मुझे। कभी सोचा ही नहीं कि मुझे भी कभी कोई ना कह सकता है। लग रहा था अचानक रिक्त सी हो गई मैं। तीन - चार दिन वही दीवानगी की हालत रही। सब मित्र आकर मिल रहे थे मुझसे। सौरभ को बुलाया मैंने। आया वह।" मन को संभालो। मैंने उससे बात की थी। सही में वो नहीं जानता तुमको। अच्छा लड़का है। गलत नहीं बोलेगा।"ये सारे साल कौंध ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 8 - वो मेरा खत

बहुत खुश थी मैं उस रात, अगली सुबह की प्रतीक्षा करती हुई - पूरी उम्मीद के साथ कि जवाब ही और वो भी सकारात्मक। जैसे - तैसे रात बीती। सुबह मम्मी - पापा के ऑफिस जाने के बाद मैं भी निकल गई संयोगिता के घर। पहुंचते ही मैं उद्दिग्न थी सब बताने को।"पता है कल मैंने उसे पत्र लिखा है।" "अच्छा""ये तो पूछो - क्या लिखा?""हां, बताओ क्या लिखा? तुमने तो अच्छा ही लिखा होगा।" और फिर मैं शुरू हो गई अपने १०पृष्ठ के पत्र का पूरा विश्लेषण देने। ऐसे लिखा मैंने, ये लिखा मैंने। बहुत शांति और धैर्य के साथ पूरे ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 9 - गली में आज चांद निकला

सौरभ आया अगले दिन।"ये क्या किया, अपराजिता तुमने? कल शाम मुलाकात हुई मेरी। उसने बताया कि सड़क पर तुमने किया उसे।""मेरा पत्र लौटा दिया उसने, इसलिए।" "अरे, ये तो उसकी मर्जी है रखे, ना रखे। छोड़ दो उसे तुम। मैंने बोला ना, तुम्हारे लिए सही नहीं है। अगर मेरे लिए कोई इतना करे तो जीवन भर उसका गुलाम बन जाऊं।"" अब मैं क्या करूं? तुम कुछ भी करके सब ठीक करो। अब कुछ बदतमीजी नहीं करूंगी।"तीन दिन बाद सौरभ आया मिलने। "अपराजिता, कल उससे मेरी मुलाकात हुई है। मैंने समझाया है तुम्हारे बारे में। शायद आज - कल में तुमसे मिलने ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 10 - कॉलेज लाइब्रेरी

खुशनुमा सुबह थी वह कई दिनों के बाद। मन शांत था मेरा। दस बजने को थे और मैं तैयार निकलने के लिए - नीले कुर्ते - सलवार में । खुद को देखा मैंने आइने में। अच्छी लग रही थी मैं। सोचा कि बूथ से ही फोन करूंगी आज जो घर के पास वाले मार्केट में था। ११बजने में १० मिनट थे। निकली मैं घर से और बूथ पर जाकर कॉल लगाया। फोन तुम्हीं ने उठाया था। " मैं बोल रही हूं। "" पता है। "" तो क्या जवाब है तुम्हारा?"" हां।""क्या मतलब?"" यही जवाब देना था ना मुझे।"शायद अंदर से ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 11 आखिरी मुलाकात

रेल द्रुत गति से दौड़ रही थी और उसके साथ ही कई - कई स्मृतियां भी कौंध रही थी में। बहुत सारी घटनाएं दिमाग में आ जा रही थीं। वो दिन जब हमारा स्नातक का परीक्षाफल आया था और कॉलेज जा रही थी मैं। सौरभ का भाई आया था एक पेपर लेकर। एक दुर्घटना में सौरभ को चोट आई थी और हाथ पर प्लास्टर चढ़ा था। तो मुझे ही उसका रिजल्ट लेकर आना था। पेपर में उसका क्रमांक एवम् अन्य जानकारियां थी।अपने विषय में मेरा कॉलेज में दूसरा स्थान था और सौरभ का भी रिजल्ट बहुत अच्छा रहा था। रिजल्ट ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 12 - बारिश की बूंदें

सुबह जब आंखें खुली तो देखा मम्मी चाय पी रही थी। अभी एक पूरे दिन की यात्रा शेष थी। ८बजे के करीब ट्रेन पहुंचेगी भुवनेश्वर। बिहार से निकल कर हम पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर चुके थे और उड़ीसा आना बाकी था अभी। देश के इस हिस्से की ट्रेन खाली - खाली सी थी और नोन एसी होने के बावजूद साफ सुथरी भी। वैसे भी रेल यात्रा मुझे बहुत पसंद है खास कर खुली खिड़की वाली - लगता है उस जगह को, उसकी धरती को, हवा को -आप महसूस कर रहे हों। और जगह - जगह पर चढ़ते स्थान ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 13 - सपनों की मंजिल

"आ भी जा, आ भी जा....." लकी अली का स्वर गूंजता कहीं भी और छोटे रिशी की याद बेचैन देती मुझे। हर सुबह लगता कि आंखे खोलने पर छुटकी सामने होगी - "दीदी, चाय पियोगी। " और वासु जिससे खूब लड़ाई होती रहती थी घर में, उसकी खूब याद आती थी मुझे। बार - बार मम्मी - पापा का चेहरा याद आता, कुछ नहीं अच्छा लग रहा था मुझे यहां। मेरी रूम मेट और हॉस्टल के अन्य बैच मेट सब खुश नजर आते। नए शहर , नई स्वतंत्रता का सब भरपूर आनंद ले रहे थे। मौसीमां चौक पर स्थित ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 14 - खुशियों के वर्ष

मनालीहमारे संस्थान की तरफ से हम लोग मनाली जा रहे थे। १५ दिनों का एडवेंचर ट्रिप था ये। काउंट शुरू था। पहली बार मैं किसी हिल स्टेशन जा रही थी। दिल्ली से हमारी बस तैयार थी। हम सब खूब उत्साहित थे। साथ में थे सोनी सर। आधी रात तक अंत्याक्षरी चलता रहा। सर ने भी एक से एक गाने सुनाए और मैं तो हर गाने में साथ दे ही रही थी। थक कर कब सोए सब , याद भी नहीं और जब नींद खुली - तो धरती अपने सर्वोत्तम रूप में सामने बिछी थी। हमारी बस रुकी थी ढाबे ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 15 - पहली नौकरी

दिल्लीपढ़ाई पूरी हो चुकी थी मेरी। दिल्ली का चुनाव मैंने किया था क्योंकि मेरी मित्र थी वहां। ढेर सारे एवम् थोड़े से सामान के साथ दिल्ली पहुंची मैं। संयोगिता को पहले ही बता दिया था। स्टेशन आने वाली थी वो।दिल्ली स्टेशन - देख कर लगा सालों पहले यहां मेरी तरह ही वर्षा वशिष्ठ आई होंगी ' मुझे चांद चाहिए ' वाली। स्टेशन पर संयोगिता के साथ दीपक एवं अन्य कोई परिचित थे। मैं ऑटो से जाना चाहती थी कि क्योंकि दो सामान थे मेरे पास और एक छोटा सा पीठ पर टंगा बैग। दो बाइक लेकर आए थे वो। तो ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 16 - कब आओगे हर्ष

कुछ दिन बैठने के बाद एक मित्र के सहयोग से दुबारा नौकरी मिल गई मुझे।मशीनी जिंदगी हो गई थी यहां। और इतना करके भी कुछ नहीं बचता था। लगता था सब छोड़ कर भाग जाऊं। फिर याद आता कि मम्मी पापा ने इतना खर्च किया मेरी पढ़ाई में। दिल्ली मेरी पसंदीदा जगह थी, पर आने के बाद से अब तक कहीं गई नहीं थी मैं। सारे जगहों से परिचित थी मैं यहां, लेकिन सिर्फ किताबों के द्वारा। १५ अगस्त की वह लंबी छुट्टी वाला सप्ताहांत और विनायक - मेरे संस्थान का मित्र आया था दिल्ली। वह मुंबई में कार्यरत था। ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 17 - आह्लाद के दिन

तुम बदल रहे थे और इस बार तो साफ मैंने महसूस किया यह बदलाव। क्या कारण था। तुम कोशिश लगे हुए थे पर संतोषजनक परिणाम आया नहीं था कहीं से। मुझे पूरा विश्वास था तुम्हारी क्षमताओं पर , पर तुम क्यों नकारात्मक हो रहे थे? समय लगता है जब हमारी आकांक्षाएं बड़ी हो, और मैं तो थी ही तुम्हारे साथ हर कदम पर।पर क्या मेरा साथ होना ही तुम्हें परेशान कर रहा था? दिल्ली में हमारी पहली मुलाकात, जो कि बहुप्रतीक्षित रही थी मेरे लिए, कहीं से मुलाकात भी नहीं लगी मुझे। शायद मेरे जोर देने की वजह से ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 18 - मोह भंग

आज का सारा काम बाकी रहा था मेरा और अब हिम्मत भी नहीं थी। ६बजे करीब घर पहुंची। बहन चाय पिलाया। मन दुखी था मेरा। कल से एक पूरा सप्ताह था सामने - थके शरीर और मन के साथ। अगले दिन फोन की आवाज से नींद खुली, "अभी इस नंबर पर कॉल करो।" हर्ष था दूसरी तरफ। घबरा गई मैं , क्या हुआ? कहां का नंबर है। फोन उठाया। उफ़, नो बैलेन्स। कल सोचा था रिचार्ज करवाऊंगी ,पर समय नहीं मिला। बाहर दौड़ी मैं बूथ पर। ठंड में नजदीक का बूथ भी सुबह ६:३० बजे तक खुला नहीं था। क्यों उठेगा ...Read More

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तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 19 - लव इज नॉट ब्लाइंड

गो एंड गेट मैरिडपूरे सप्ताह फिर समय नहीं मिला मुझे। अंदर से आक्रोश से भरी थी मैं। उस दिन में संयोगिता का फोन आया। आज तक कोई बात छुपाई नहीं थी उससे। लगातार बोलती गई मैं। अंदर से कहीं उम्मीद थी कि कुछ बोलेगी संयोगिता और हमेशा की तरह मुझे शांत कर देगी।हमेशा की तरह पूरी बात शांति से सुना उसने और फिर कहा - "कई महीनों से तुमसे कहना चाहती थी मैं ये। हर्ष इज टेकिंग यू फॉर ग्रांटेड। उसे लगने लगा है कि कुछ भी करे वह, तुम उसे छोड़ नहीं सकती।"सिर घूम गया मेरा उस दिन। ...Read More