अनुराधा

(220)
  • 107.8k
  • 83
  • 62.6k

लड़की के विवाह योग्य आयु होने के सम्बन्ध में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उतना झूठ बोलने के बाद भी उसकी सीमा का अतिक्रमण किया जा चुका है और अब तो विवाह होने की आशा भी समाप्त हो चुकी है। ‘मैया री मैया! यह कैसी बात है?’ से आरम्भ करके, आंखें मिचकाकर लड़की के लड़के-बच्चों की गिनती पूछने तक में अब किसी को रस नहीं मिलता। समाज में अब यह मजाक भी निरर्थक समझा जाने लगा है। ऐसी ही दशा है बेचारी अनुराधा की। और दिलचस्प बात यह है कि घटना किसी प्राचीन युग की नहीं बल्कि एकदम आधुनिक युग की है। इस आधुनिक युग में भी केवल दान-दहेज, पंचाग, जन्म-कुंड़ली और कुल-शील की जांच-पड़ताल करते-करते एसा हुआ कि अनुराधा की उम्र तेईस को पार कर गई, फिर भी उसके लिए वर नहीं मिला।

Full Novel

1

अनुराधा - 1

लड़की के विवाह योग्य आयु होने के सम्बन्ध में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उतना झूठ बोलने बाद भी उसकी सीमा का अतिक्रमण किया जा चुका है और अब तो विवाह होने की आशा भी समाप्त हो चुकी है। ‘मैया री मैया! यह कैसी बात है?’ से आरम्भ करके, आंखें मिचकाकर लड़की के लड़के-बच्चों की गिनती पूछने तक में अब किसी को रस नहीं मिलता। समाज में अब यह मजाक भी निरर्थक समझा जाने लगा है। ऐसी ही दशा है बेचारी अनुराधा की। और दिलचस्प बात यह है कि घटना किसी प्राचीन युग की नहीं बल्कि एकदम आधुनिक युग की है। इस आधुनिक युग में भी केवल दान-दहेज, पंचाग, जन्म-कुंड़ली और कुल-शील की जांच-पड़ताल करते-करते एसा हुआ कि अनुराधा की उम्र तेईस को पार कर गई, फिर भी उसके लिए वर नहीं मिला। ...Read More

2

अनुराधा - 2

विजय शुद्ध विलायती लिबास पहने, सिर पर हैट, मुंह में चुरुट दबाए और जेब में चेरी की घड़ी घुमाता बाबू परिवार के सदर मकान में पहुंचा। साथ में दो मिर्जापुरी लठैत दरबान, कुछ अनुयायी प्रजा, विनोद घोष और पुत्र कुमार। जायदाद पर दखल करने में हालाकि झगड़े फसाद का भय है, फिर भी लड़के को लड्डु गोपाल बना देने के बयाज मजबूत और साहसी बनाने के लिए यह बहुत बड़ी शिक्षा होगी, इसलिए वह लड़के को भी साथ लाया है, लेकिन विनोद बराबर भरोसा देता रहा है कि अनुराधा अकेली और अततः नारी ही ठहरी, वह जोर-जबर्दस्ती से हरगिज नहीं जीत सकती। फिर भी जब रिवाल्वर पाक है तो साथ ले लेना ही अच्छा है। ...Read More

3

अनुराधा - 3

बाबुओं के मकान पर पूरा अधिकार करके बिजय जमकर बैठ गया। उसने दो कमरे अपने लिए रखे और बाकी में कहचरी की व्यवस्था कर दी। विनोद धोष किसी जमाने में जमींदार के यहां काम कर चुका थी. इसलिए उसे गुमाश्ता नियुक्त कर दिया, लेकिन झंझट नहीं मिटे। इसका कारण यह था कि गगन चटर्जी रुपये वसूल करने के बाद हाथ-से-हाथ रसीद देना अपना अपमान समझता था। क्योंकि इससे अविश्वास की गंध आती है जो कि चटर्जी वंश के लिए गौरव की बात नहीं थी, इसलिए उसके अन्तर्ध्यान होने के बाद प्रजा संकट में फंस गई है। मौखिक साक्षी और प्रमाण ले लेकर लोग रोजाना हाजिर हो रहे हैं। ...Read More

4

अनुराधा - 4

इस प्रकार में आने के बाद एक पुरानी आराम कुर्सी मिल गई थी। शाम को उसी के हत्थों पर पैर पसाक कर विजय आंखें नीचे किए हुए चुरुट पी रहा था। तभी कान मं भनका पड़ी, ‘बाबू साहब?’ आंख खोलकर देखा-पास ही खड़े एम वृद्ध सज्जन बड़े सम्मान के साथ सम्बोधित कर रहे हैं। वह उठकर बैठ गयाय़ सज्जन की आयु साठ के ऊपर पहुंच चुकी है, लेकिन मजे का गोल-मटोल, ठिगना, मजबूत और समर्थ शरीर है। मूंछे पक कर सफेद हो गई है, लेकिन गंजी चांद के इधर-उधर के बाल भंवरों जैसे काले है। सामने के दो-चार दांतो के अतिरिक्त बाकी सभी दांत बने हुए है। वार्निशदार जूते हैं और घड़ी के सोने की चेन के साथ शेर का नाखून जड़ा हुआ लॉकेट लटक रहा है। गंवई-गांव में यह सज्जन बहुत धनाढ्य मालूम होते है। पाक ही एक टूटी चौकी पर चुरुट का सामान रखा था, उसे खिसकाकर विजय ने उन्हें बैठने के लिए कहा। वद्ध सज्जन ने बैठकर कहा, ‘नमस्कार बाबू साहब।’ ...Read More

5

अनुराधा - 5

कलकत्ता से कुछ साग-सब्जी, फल और मिठाई आदि आई थीं। विजय ने नौकर से रसोईघर के सामने टोकरी उतरवाकर ‘अंदर होंगी जरूर?’ अंदर से मीठी आवाज में उत्तर आया, ‘हूं।’ विजय ने कहा, ‘आपको पुकारना भी कठिन है। हमारे समाज में होती तो मिस चटर्जी या मिस अनुराधा कहकर आसानी से पुकारा जा सकता था, लेकिन यहां तो यह बात विल्कुल नहीं चल सकती। आपके लड़को में से कोई होता तो उनमें से किसी को ‘अपनी मौसी को बुला दो’ कहकर अपना काम निकाल लिया जा सकता था, लेकिन इस समय वह भी फरार हैं। क्या कहकर बुलाऊं, बताइए?’ ...Read More

6

अनुराधा - 7 - अंतिम भाग

कुमार नही आया, यह सुनकर विजय की मां मारे भय के कांप उठी ‘यह केसी बात है रे? जिसके लडाई है उसी के पाक लड़के को छोड़ आया?’ विजय ने कहा, ‘जिसके साथ लड़ाई थी वह पाताल मे जाकर छिप गया है। मां, किसकी मजाल है जो उसे खोज निकाले। तुम्हारा पोता अपने मौसी के पास है। कुछ दिु बाद आ जाएगा।’ ‘अचानक उसकी मौसी कहां से आ गई?’q ...Read More

7

अनुराधा - 6

इसीत से तरह पांच-दिन बीत गए। स्त्रियों के आदर और देख-रेख का चित्र विजय के मन में आरंभ से अस्पष्ट था। अपनी मां को वह आरंभ से ही अस्वस्थ और अकुशल देखता आया है। एक गृहणी के नाते वह अपना कोई भी कर्तव्य पूर्ण रूप से निभा नहीं पाती थीं। उसकी अपनी पत्नी भी केवल दो-ढ़ाई वर्ष ही जीवित रही थी। तब वह पढ़ना था। उसके बाद उसका लम्बा समय सुदूर प्रवास में बीता। उस प्रवास के अपने अनुभलों की भली-बुरी स्मृतियां कभी-कभी उसे याद आ जाती है, लेकिन वह सब जैसे किताबों में पड़ी हुई कल्पित कहानियों की तरह वास्तविकता से दूर मालूम होती है। जीवन की वास्तविकता आवश्यकताओं के उनका कोई सम्बन्ध ही नहीं। ...Read More