सजा संवरा कमरा लेकिन उदास हो जैसे ..., जैसे उसे उम्मीद हो सायरा के आ जाने की ! रणबीर की नजर सामने की अलमारी पर पड़ी तो उसे खोल ली। अलमारी में सायरा की गुड़ियाँ रखी हुयी थी। उसे गुडिया खेलने का बहुत शौक था। जब भी बाज़ार जाना होता तो एक न एक खिलौना तो होता ही था साथ में गुडिया भी जरुर होती थी। रणबीर सिंह गुड़ियाँ देखता -देखता जैसे रो ही पड़ा जब उसकी नज़र अपने हाथों पर पड़ी। हूक सी उठी , तड़प उठा , उसने अपनी ही गुडिया का गला दबा दिया। जोर से रुलाई फूटने वाली ही थी कि सामने गुड्डा रखा नज़र आया। ओह यह गुड्डा ! यह गुड्डा कितनी जिद करके लाई थी सायरा। उसे याद आया, एक बार वह सायरा को शहर ले कर गया था तो बहुत सारे खिलौने दिलवाए थे जिस पर हाथ रख दिया वही खिलौना उस का हो गया। दोनों हाथों में खिलौनों के थैले अभी जीप में रखे ही थे कि सायरा ठुनक गई ! छोटा सा -प्यारा सा मुहं और नाक सिकोड़ कर बोली, बापू , आपने मुझे गुड्डा तो दिलाया ही नहीं ...! रणबीर ने हंस कर उसे गोद में उठा कर कहा , बिटिया , अगली बार जब हम आयेंगे तो ले दूंगा , अब तो देर हो गयी , रात होने को है। नहीं बापू , मुझे तो अभी ही लेना है नहीं तो मैं घर ही नहीं जाउंगी ...! सायरा ने रुठते हुए कहा। इतनी प्यारी बेटी और रणबीर के कलेजे का टुकड़ा, तो भला वह कैसे नहीं मानता उसकी बात को ...!