⭐ कृष्ण–अर्जुन कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त हो चुका था।घोड़ों की हिनहिनाहट, रथों की गड़गड़ाहट,तीरों की वर्षा और रणभूमि की गर्जना—सब इतिहास बन चुके थे।लेकिन अर्जुन के भीतरएक ऐसी वीरानगी बन चुकी थीजो किसी भी युद्ध से अधिक भयावह थी।महल में उत्सव था,राज्य पुनर्निर्माण की चर्चा थी,पर अर्जुन के भीतरएक मौन का साम्राज्य खड़ा था।वह रातों को छत पर बैठकरगांडीव को देखता और सोचता—“अगर विजय ही सब कुछ थी,तो दिल इतना खाली क्यों है?”कृष्ण सब देख रहे थे।अर्जुन की बेचैनी उनके लिए अनदेखी नहीं थी।---⭐ अध्याय 1 — अर्जुन का टूटा हुआ मनगंगा के तट पर ढलती शाम का प्रकाशअर्जुन की आँखों