वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी अदालत की खिड़की से हल्की धूप भीतर घुस रही थी। धूप की वह पतली लकीर लकड़ी की पुरानी मेज़ पर फैलते हुए जैसे पूरे कमरे की उदासी कोचीर देना चाहती थी। बाहर बरामदे में सन्नाटा था,भीतर अदालत की पीली पड़ चुकी फाइलों की गंध और और पुरानी दीवारों पर वर्षों की गंभीरता टंगी हुई थी। जज साहब की मेज़ के सामने पुलिस वाले ने एक दुबला पतला आदमी खड़ा किया। वह धारीदार कमीज़ और पैवंद लगी पतलून पहने हुए था। चेहरे पर धूल, पैरों में घिसी हुई चप्पलें और उसके हाथों की उंगलियां खेत की मिट्टी