जहाँ से खुद को पाया - 4 (लास्ट पार्ट)

  • 132

Part - 4 लास्ट पार्ट सुबह की हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन सयुग के भीतर अजीब सी तपिश थी। ‎रात भर उसने करवटें बदली थीं। आँखें बंद करता तो आयशा का चेहरा सामने आ जाता, और खुलतीं तो वही सवाल—क्या वह सच में उस दुनिया के सामने खड़ा हो पाएगा, जो अब तक उसे छोटा समझती आई है?‎‎उसने खुद से एक बात साफ़ कर ली थी। ‎अब भागने का रास्ता नहीं था। न गाँव से, न दिल्ली से, न हालात से। इस बार उसे खड़ा रहना था।‎‎कैफे का नया आउटलेट अब सिर्फ़ एक दुकान नहीं था, वह सयुग की पहचान बन चुका