खोयी हुई चाबी

खोयी हुई चाबीVijay Sharma Erry सवाल यह नहीं कि चाबी कहाँ खोयी, सवाल यह है कि हमने कब से खुद को ताला लगा रखा है।रामपुर की पुरानी हवेली में रहता था अवध बिहारी लाल, उम्र साठ के पार, दिल अभी भी किशोर। लोग उन्हें “बाबूजी” कहते थे। हवेली की सबसे ऊपरी मंजिल पर एक लोहे का संदूक था, जिसकी चाबी बाबूजी ने पचास साल पहले गँवा दी थी। संदूक में क्या था, कोई नहीं जानता था। नौकर बदलते रहे, बच्चे-पोतों ने सैकड़ों बार पूछा, पर बाबूजी हर बार मुस्कुरा कर टाल जाते – “जब सही वक्त आएगा, चाबी खुद मिल जाएगी।”एक