विंचू तात्या

विंचू तात्यालेखक राज फुलवरेरात का सन्नाटा था. आसमान में आधी छिपी चाँदनी मकान की खिडकियों पर चांदी की लकीरें खींच रही थी. शहर की गलियों में देर रात तक शोर रहने वाला माहौल भी थक कर सो चुका था. पर इस शहर में एक आदमी ऐसा था जिसे रात की नींद नहीं, बल्कि रात में काम शुरू होता था. नाम था विंचू तात्या.लोग कहते —सांप डसे तो उतना दर्द नहीं होता, जितना विंचू डस ले तो होता है।शायद इसलिए उसका नाम पड गया था विंचू तात्या, क्योंकि वह भी काटता नहीं दिखता था — लेकिन डंक गहरा मारता था.दिन में