अधूरी प्रेम कहानी

–––अधूरी प्रेम कहानीलेखक : विजय शर्मा एरीमालगाँव में गर्मियों की दोपहरें इतनी लम्बी होती हैं कि लगता है सूरज रुककर किसी से कुछ कहना चाहता है। लाइब्रेरी की पुरानी लकड़ी की खिड़कियों से धूप छनकर ज़मीन पर सोने की लकीरें बनती हैं। रीता उन लकीरों के बीच बैठी किताबों पर धूल झाड़ रही थी। उसकी उँगलियाँ पतली थीं, नसें उभरी हुईं, मानो कोई नाज़ुक नक्शा।राघव पहली बार लाइब्रेरी में आया था जुलाई के पहले हफ्ते में। बैंक से छुट्टी के बाद उसने सोचा था कि कुछ किताबें ले लेगा ताकि शामें कटें। उसने काउंटर पर घंटी बजाई। रीता ने सिर