देहरी पर बैठी शामस्थान: सोमेश बाबू का पुराना पुश्तैनी घर। एक बड़ा सा कमरा जिसकी छत ऊँची है और कोनों में थोड़ा अंधेरा जमा हुआ है।समय: शाम के 5:00 बजे, बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है।कमरे के भीतर एक अजीब सी ठहराव वाली खामोशी थी, जिसे सिर्फ दीवार पर टंगी पुरानी पेंडुलम घड़ी की 'टिक-टिक' और बाहर बरसते पानी का शोर ही तोड़ रहा था। खिड़की के पास रखी पुरानी लकड़ी की 'रॉकिंग चेयर' (आराम कुर्सी) पर 75 वर्षीय सोमेश बाबू बैठे थे। कुर्सी अपनी लय में धीरे-धीरे आगे-पीछे डोल रही थी—चर्र... मर्र... चर्र... मर्र...। यह आवाज़ उस खाली कमरे