part - 3दिल्ली की रातें अब सयुग को डराती नहीं थीं। पहले जिन सड़कों पर चलते हुए उसे अपने होने पर शक होता था, अब वही सड़कें उसे पहचानने लगी थीं। कैफे के बाहर लगी छोटी-सी लाइट, अंदर आती कॉफी की खुशबू और लोगों की हलचल—यह सब अब उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका था। लेकिन मन के भीतर एक कोना ऐसा था, जहाँ हर रात बेचैनी जाग जाती थी। उस कोने में आयशा रहती थी, उसकी आँखों की नमी और उसके पिता की सख़्त नज़रें।उस दिन के बाद से आयशा के पिता कैफे में दोबारा नहीं आए। आयशा भी