काशी : एक अद्भुत अह्सास लेखक : विजय शर्मा एरीशब्द संख्या : लगभग १५००सूरज अभी पूरी तरह उगा भी नहीं था कि गंगा के घाटों पर पहली नाव खेना शुरू कर चुकी थी। कोहरा पानी पर इतनी गहराई से लेटा था मानो सदियों से कोई उठा ही न हो। उस कोहरे के भीतर से घंटियों की धीमी, गहरी ध्वनि उठ रही थी, जैसे कोई बहुत पुराना रहस्य धीरे-धीरे जाग रहा हो। मैं, अर्जुन मेहro, दिल्ली का एक साधारण-सा लेखक, पहली बार काशी आया था। लोग कहते हैं कि काशी बुलाती है। मुझे लगा था ये महज काव्यात्मक बात है, पर जब