आदियोगी शिव की कथा सृष्टि के आरंभ से भी पहले की है। जब न आकाश था, न पृथ्वी, न प्रकाश और न अंधकार। केवल एक अनंत शून्य था, जिसमें न समय की गति थी और न दिशा का कोई अस्तित्व। उसी शून्य में एक चेतना स्थिर थी। वह चेतना किसी रूप में बंधी नहीं थी, फिर भी सब कुछ उसी से उत्पन्न होने वाला था। वही चेतना आगे चलकर आदियोगी शिव के रूप में प्रकट हुई।आदियोगी शिव न जन्मे थे और न कभी मरेंगे। वे आदि भी थे और अंत भी। वे शून्य भी थे और अनंत भी। जब सृष्टि