अध्याय 28 :Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 -वर्ग धर्म संतुलन — मनुष्य और समाज का वेदांत --- प्रस्तावना — वृक्ष और मनुष्य का धर्म वेद ने मनुष्य को वृक्ष के समान देखा —जड़, तना, शाखाएँ और फूल सब मिलकर एक ही जीवन हैं।जब किसी ने कहा “ऊँच” और “नीच”,तभी वृक्ष की जड़ काँप गई।धर्म किसी का दर्जा नहीं,कर्म का धर्म है। वर्ग का अर्थ है — कर्तव्य की दिशा,जाति का अर्थ है — जन्म की परिस्थिति,और धर्म का अर्थ है — जीवन की लय।तीनों जब एक ताल में रहते हैं —तो समाज स्वर्ग बनता है।और जब उनमें द्वंद्व आता है —तो वही समाज नर्क बन