आरंभिक संदेश अध्याय 17 :Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 जहाँ सत्य के शब्द और प्रवचन बिकते हैं — वहाँ सत्य नहीं होता। सत्य किसी धर्म का व्यापार नहीं है।जो उसे बेचते हैं, वे शब्द बेचते हैं —जो उसे खरीदते हैं, वे भ्रम खरीदते हैं। धर्म जब मंच बन जाता है,तो मौन खो जाता है।सत्य का कोई मूल्य नहीं,क्योंकि उसे खरीदा नहीं जा सकता। वह न किसी गुरु की देन है,न किसी ग्रंथ की संपत्ति।वह तब उतरता है,जब भीतर का हृदय खुलता है —बिना भय, बिना सौदे। सत्य कभी बिकेगा नहीं,क्योंकि वह मनुष्य की नहीं,अस्तित्व की भाषा है।*†************* मौन उपनिषद — दमन से परे — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣