माँ की चुप्पी - 1

सुबह के चार बजे थे। बाहर अभी भी गहरा अंधेरा छाया हुआ था, और पूरा मोहल्ला गहरी नींद में था। लेकिन, उस पुराने, ईंटों वाले घर के एक कोने में, एक कमरे की बत्ती जल उठी थी। यह शारदा देवी का कमरा था। उनकी नींद हमेशा की तरह सूरज की पहली किरण से पहले ही खुल गई थी।बिस्तर से उठते ही उनके घुटनों में एक तीखी टीस उठी। शारदा ने अपने होठों को कसकर भींच लिया ताकि मुंह से 'सी' की आवाज़ भी न निकले। अगर आवाज़ हुई, तो शायद बगल के कमरे में सो रहे बेटों की नींद में