“संगिनी”आस्था के कमरे में आज अजीब-सी हलचल थी। दीवार पर टंगी घड़ी की टिक-टिक उसे बार-बार याद दिला रही थी कि शाम होने वाली है। माँ ने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी निकालकर बिस्तर पर रख दी थी और खुद आईने के सामने खड़ी होकर उसके बाल सलीके से गूँथ रही थीं।“इतनी चुप क्यों है?” माँ ने आईने में उसकी आँखों से झाँकते हुए पूछा।आस्था ने हल्की-सी मुस्कान ओढ़ ली। “बस… ऐसे ही।”असल में ‘ऐसे ही’ कुछ नहीं था। आस्था एक बड़े मीडिया घराने में काम करती थी। कैमरे, हेडलाइंस और डेडलाइंस के बीच रहने वाली आस्था खुद की जिंदगी