उज्जैन एक्सप्रेस - 2

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  "कभी-कभी प्यार मर नहीं जाता... बस सिसकता रहता हैं , दिल के किसी कोने में , ज़िंदा लाश बनकर।"   11:49 PM  – उज्जैन जंक्शन, प्लेटफॉर्म नंबर 4   बारिश की नमी अब भी प्लेटफॉर्म की दीवारों से रिस रही थी। दूर स्टेशन पर लटक रही लाइट बुझने के कगार पर थी , हल्की उमस के चलते मुरझाई सी एक कुतिया बेंच के इर्द-गिर्द घूम रही थी ; पटरी के आस-पास हल्की बारीक घास उग आई थी , सामने लटक रही बंद घड़ी के कांच पर एक हल्की सी दरार आ गयी थी ; सामने टी स्टाल पर पिछले