"कभी-कभी प्यार मर नहीं जाता... बस सिसकता रहता हैं , दिल के किसी कोने में , ज़िंदा लाश बनकर।" 11:49 PM – उज्जैन जंक्शन, प्लेटफॉर्म नंबर 4 बारिश की नमी अब भी प्लेटफॉर्म की दीवारों से रिस रही थी। दूर स्टेशन पर लटक रही लाइट बुझने के कगार पर थी , हल्की उमस के चलते मुरझाई सी एक कुतिया बेंच के इर्द-गिर्द घूम रही थी ; पटरी के आस-पास हल्की बारीक घास उग आई थी , सामने लटक रही बंद घड़ी के कांच पर एक हल्की सी दरार आ गयी थी ; सामने टी स्टाल पर पिछले