दिव्या की ट्रेन नई पोस्टिंग की ओर बढ़ रही थी। अगला जिला—एक छोटा-सा पहाड़ी इलाका, जहां सड़कें संकरी थीं और हवा में चीड़ की ताजगी भरी खुशबू। प्रोबेशन का दूसरा चरण। रेस्ट हाउस यहां भी पुराना था, लेकिन अब उसे आदत हो चुकी थी। सूटकेस खोलते ही सबसे पहले श्वेत साड़ी निकाली, और खिड़की से बाहर देखा। दूर पहाड़ों पर बादल छाए थे, जैसे उसका मन।“यहां भी अकेली हूं,” उसने बुदबुदाया, “पर अब अकेलापन मेरा साथी है।”पहले हफ्ते में ही काम की रफ्तार पकड़ ली। गांवों में दौरा, महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों की मीटिंग, बाढ़ राहत का काम। शाम