जीवन के रंग

जीवन के  रंग लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००गाँव था छोटा-सा, नाम था रंगपुर। नाम के मुताबिक़ गाँव रंगों से भरा हुआ था। खेतों में सरसों पीली, गेहूँ सुनहरी, आम के बाग हरे, और फाल्गुन में होली के रंग तो जैसे आसमान भी लज्जा से लाल हो जाता। पर गाँव के बीचोबीच एक मकान था जिसकी दीवारें सफ़ेद थीं, एकदम बेदाग़, मानो किसी ने कभी रंग छूने ही न दिया हो। उस मकान में रहती थी बूढ़ी अम्मा, लोग कहते थे, “लक्ष्मी बाई की सूरत में रंग नहीं चढ़ता।”लक्ष्मी बाई अस्सी पार कर चुकी थीं। उनकी आँखें अब धुंधली हो