अनजाना साया लेखक: विजय शर्मा एरी(लगभग १५०० शब्द)गाँव का नाम था कालाकाँकर। पहाड़ियों के बीच बसा वो गाँव सदियों से शांत रहा था, पर लोग कहते थे कि हर अमावस्या की रात को जंगल के उस पार वाली पुरानी हवेली में कुछ चलता है। कोई रोशनी नहीं, कोई आवाज़ नहीं, बस एक साया जो कभी दीवार पर दिखता, कभी खिड़की में झाँकता, और फिर ग़ायब हो जाता। गाँव वाले उसे “वो” कहते थे। न नाम, न चेहरा, बस “वो”।मैं शहर से आया था। नाम था मेरा अर्जुन मेहरा। पेशे से फोटोग्राफर, शौक़ से कहानियाँ ढूँढने वाला। एक पुराना दोस्त राकेश यहाँ