शाम से बातें शुरू हो गईं।उन्होंने लिखा—'दिव्या, तुम्हारी लेखनी में दर्द भी है और विद्रोह भी। मैंने कभी किसी में इतनी गहराई नहीं देखी।''जी सर,' दिव्या ने जवाब में लिखा, 'आपकी हौसलाअफजाई से आत्मविश्वास काफी बढ़ा, शुक्रिया कि आपने इस लाइक समझा।'दूसरे दिन सुप्रभात के बाद फिर लिखा अविनाश जी ने, 'आप बैचलर हैं, तो मैं भी अकेला हूँ। पत्नी 4-5 साल पहले छोड़कर चली गई थी। अब तो आपकी तरह ही किताबों और मंदिर में शांति ढूंढता हूँ।'पर्युषण के दिनों में वे जिनालय आने लगे।जब सामूहिक चँवर डुलाई और स्तवन गायन होता, दिव्या श्वेत वस्त्रों में सबसे आगे खड़ी