शामत

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                      नंदू मुझे कस्बापुर में मिला था। अपने तेरहवें और मेरे ग्यारहवें वर्ष में।सन उन्नीस सौ बासठ में।                     जब सरकारी स्कूल की अपनी अध्यापिकी की एक बदली के अंतर्गत मेरे पिता को वहां जाना पड़ा था। लखनऊ का अपना पुश्तैनी मकान छोड़ कर। वहीं किराए के एक मकान में रहने।                      उन की जगह बदल रहे अध्यापक ही ने वह मकान हमें सुझाया था : यहां घर बैठे ट्यूशन मिलेगी। खालिस