साहित्य के क्षेत्र में मेरी अनभिज्ञता अजेय- अज्ञान के निकट थी और सुमंत्रित उन लोगों की भलाई चाहने के अतिरिक्त उनके संग मेेरी सहचारिता शुन्य थी। बहन के सभी मित्र बुद्धिजीवी थे। हर किसी के पास कहने को बहुत कुछ था। दूूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सन उन्नीस सौ तैंतालीस के उन दिनों के कस्बापुर में भी वे सब जंग लड़ रहे थे — ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खड़े आंदोलनकारियों को बचाने की जंग— बल्कि उन में से कुछ तो सन उन्नीस