काल की पुकार

  • 264
  • 66

काल की पुकार लेखक: विजय शर्मा एरी(शब्द गणना: लगभग १५००)गाँव का नाम था कालपुर। चारों तरफ़ घने जंगल, बीच में एक पुराना कुआँ और उस कुएँ के पास एक पीपल का पेड़। कहते हैं, उस पेड़ की जड़ें कुएँ के अंदर तक जाती हैं। गाँव वाले उस कुएँ को “कालकुआँ” कहते थे। कोई उसमें झाँकता भी नहीं था। रात के समय तो बच्चे उस तरफ़ पैर भी नहीं रखते थे।मगर मुझे उस कुएँ ने हमेशा खींचा। मैं था रामू, उम्र सत्रह साल। स्कूल में दसवीं पास कर चुका था, अब गाँव में ही पिताजी की दुकान पर हाथ बँटाता। पिताजी कहते,