बाहर लगे सार्वजनिक हेण्डपम्प से पानी भरकर लौटने के बाद मंजीत ने घर का दरवाजा बंद कर लिया। बाल्टी उसने रसोई के पास कच्ची मोरी पर रख दी और राघवी के साथ बर्तन धुलवाने लगा।चाँद की हल्की रोशनी में मोरी का यह दृश्य बड़ा मनोरम था। स्टील के बर्तन चांदनी रात में चाँदी से चमक रहे थे। रागिनी का दुपट्टा सीने से सरक गया था, जिसे देखती मंजीत की आंखें वहीं टिकी थीं। और बर्तन मलने से उसकी चूड़ियाँ हल्के-हल्के खनक रही थीं तो वातावरण में एक जलतरंग-सा बज रहा था। शायद, असावधानी-वश उसकी पजामी की मोहरी गीली हो गई