राघवी दी का आश्रम से बहिर्गमन देख काव्या का मन अस्थिर हो गया था। क्योंकि उसने भी प्रेम में धोखा खाकर आश्रम की शरण ली थी। सत्र समाप्ति के बाद जब वे लोग चले गए, रात को आश्रम से चुपके से निकल वह भी रागिनी-मंजीत के ठिकाने की ओर चल पड़ी। उस गहरी रात में चाँद की मद्धिम रोशनी उसे रास्ता दिखा रही थी। उसका इरादा केवल यह देखना था कि क्या वह प्रेम, जो उसने अपने जीवन में खो दिया था, राघवी दी और मंजीत के जीवन में जीवित है? वह समझना चाहती थी कि- क्या प्रेम वाकई जीवात्मा का जीआत्मा