राघवी से रागनी (भाग 3)

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आश्रम में सन्नाटा पसरा था। साध्वी विशुद्धमति, जिनकी उम्र अब पिचासी को पार कर चुकी थी, अपने कक्ष में लकड़ी की चौकी पर बैठी थीं। उनकी आँखें बंद थीं, मगर चेहरा उदास। उनके हाथ में वह पुरानी डायरी थी, जिसमें राघवी ने अपने शुरूआती दिनों में भजन और विचार लिखे थे। विशुद्धमति की साँसें भारी थीं, और शरीर कमजोर। राघवी के आश्रम छोड़ने की बात उनके मन को कचोट रही थी। राघवी, जिसे उन्होंने तेईस-चौबीस की उम्र में आश्रम में लिया था, उनके लिए बेटी जैसी थी। वह उसकी मासूमियत, उसकी जिज्ञासा, और उसकी साधना की गहराई को याद कर रही