राघवी से रागिनी (भाग 2)

उस रात रावी तट के उस गाँव में शिशिर की खुली बयार बह रही थी, और मंजीत और रागिनी अपने घर की छत पर बरसाती में बैठे नदी का सुंदर बहाव देख रहे थे। जबकि, आकाश में चमकते चाँद की आवारा चाँदनी बरसाती में घुसी पड़ रही थी।बात करते-करते रात काफी गहरी हो चुकी थी। ओस-कण बरसाती की पॉलीथिन पर टपक रहे थे, और हवा में ठंडक घुल गई थी। माहौल में नींद का आलम छाने लगा था। रागिनी ने जमुहाई ले, आलस्य में कहा, 'मंजी, चलो अब नीचे चलें, नींद बुला रही है...'मंजीत इसी पल की प्रतीक्षा कर रहा